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खेती योग्य जमीन दी तथा १२ हलकी जमीन देवपूजकों के वास्ते
प्रदान की । यथा
प्रस्तावना
"तमतिशय मतिशायिनं निशम्य श्रीजयसिंहदेवो मालवेश्वरः स्फुरद्भक्तिप्राग्भार भास्वरान्तःकरणः स्वामिनं स्वयमपूजयजत् । देवपूजार्थं च चतुर्विंशतिलकृप्याँ भूमिमदत्त मवपतिभ्यः । द्वादशहलबाह्य arati areaभ्यः प्रददाववन्तिपतिः । अद्या दिग्मण्डलव्यापाaara भगवानभिनन्दनदेवस्तत्र तथैव पूज्यमानोऽस्ति ।" - विविधतीर्थ० पु० ५८ । जिनप्रभसूरिद्वारा उल्लिखित यह मालवाधिपति जयसिंहदेव द्वितीय जयसिंहदेव जान पड़ता है. जिसे जैतुगिदेव भी कहते हैं और जिसका राज्यसमय विक्रम सं० १२६० के बाद और विक्रम सं० १३१४ तक वतलाया जाता है। परिहत आशाधरजीने त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, सागारधर्मामृतटीका और अनगारधर्मामृतटीका ये तीन प्रन्थ क्रमशः विक्रम सं० १२६२, १२६६ और १३०० में इसी (जयसिंहदेव द्वितीय अथवा जैतुगिदेव) के राज्यकाल में बनाये २। जिनयज्ञकल्पकी प्रशस्ति ( प ५) में पण्डित आशाधरजीने यहाँ ध्यान देने योग्य एक बात यह लिखी है' कि 'म्लेच्छ्रपति
१ देखो, जैनसाहित्य और इतिहास पृ० १३४ | २ देखो, इन ग्रन्थोंकी अन्तिम प्रशस्तियाँ | ३ म्लेच्छेशेन सादलक्षविषये व्याप्ते सुवृत्तदतित्रासाद्विन्ध्यनरेन्द्रदोः परिमलस्फूर्जस्त्रिवर्गों जसि । प्रासो मालवमण्डले बहुपरीवारः पुरीभावसन् यो धारामपट चिनप्रमितिवाक्शास्त्रे महावीरतः ||१५|| 'मच्छेशेन साहिबुदीन तुरुष्कराजेन ' - सागारधर्मा० टीका पृ० २४३ ।