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सत्यचारित्र-चिन्सामा लिये उत्सुक मनुष्य शीघ्र दौड़ भो लगावें तो भो उसे कहीं प्राप्त नहीं कर सकते। जो वस्तु जैसी है उसको वैसा कहना तथ्य है । सत्यका एक नाम तथ्य है यह तथ्य विसंवादको नष्ट करने वाला है। सत्पुरुषोंके लिये जो वचन हितकारी हो वह सत्य कहलाता है, यह सत्य भवबाधा -संसारके जन्म, मरण सम्बन्धो दुःखौंको नष्ट करने वाला है। 'हित, मित और प्रिय बोलना चाहिये' इस नोतिको हृदयमें रख सदा सत्य वचन बोलो, असत्य वचन कभी मत बोलो। मौन ही परम धर्म हैं । यदि उसकी प्राप्ति सम्भव न हो तो पुरुषोंको सदा सत्य वचन हो बोलना चाहिये । यह सत्य वचन सवको सन्तुष्ट करने वाला है।
भावार्थ-ऊपर अज्ञानजन्य असत्यको क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान तक बतलाया है । उसका कारण है केवल ज्ञान होने के पूर्व तक मनुष्यके अज्ञानभाव रहता है। अज्ञान, असत्य वचन का एक कारण है। अतः कारणके सद्भावमें कार्यका अस्तित्व बताया गया है। वैसे सातिशय सप्तम गुणस्थानसे लेकर बारहवें गुणस्थान तक सब गुणस्थान ध्यानके गुणस्थान हैं। इनमें बाह्य जल्पका अभाव रहता है । 'अजयंष्टश्यम्' बाक्यमें अजका अर्थ पुरानी धान्य होनेपर भो पर्वतको मांके आग्रहसे पर्वतके पक्ष में राजा वसुने निर्णय दिया था । इसलिये कषायजन्य होने से वह उसके पतनका कारण हुआ ॥ ५२-६२ ।। आगे अचौर्य महावतका वर्णन करते हैं
प्रमादाद् यददत्तस्थावानं तत्स्तेयमुच्यते । तस्य त्यागो भवेत् स्तयत्यागो नाम महावतम्।। ६३ ।। अर्थो हि विद्यते पुंसां प्राणतुल्यो महीतले । तन्नाशे च ततो दुःखं जायते मृत्युसन्निभम् ॥ ६४ ।। स्वकीयपुण्यपापाभ्यां महताल्पतर धनम् । लभ्यते पुरुषेयंच चेतनाचेतनात्मकम् ।। ६५ ।। सन्तोषस्तत्र कर्तव्यो न्यायतो वा सदर्जयेत् । द्रध्यं तथा परित्याज्यं परकीयं विवेकिना ॥६६॥ तथा क्षेत्रमपि त्याज्यं परकीयं महीतले । साधारणजनानां तु चर्चा बूरेऽत्र वर्तताम् ॥ ६७ ॥ विपुलसियुताभूषा अपि मिर्बलभूभजाम् । राष्ट्रमपहतु लग्ना नित्यमेव बरातले ।। ६८ ॥