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सम्यक्चारित्र-चिन्तामणिः वृक्षसे तोड़नेपर वृक्षका जीव तो फलों और पत्तोंमें नहीं रहता परन्तु फल और पत्तोंका जोव रहता है उसकी अपेक्षा वे सचित्त माने जाते हैं। सचित्तका त्यागी इन्हें अचित्त कर हो खा सकता है। यदि वृक्षसे तोड़ लेने पर पत्र आदि अचित्त हो जाते हैं तो भोगोपभोग परिमाण व्रतके अतिचारोंमें जो सचित्त, सचित्तसबन्ध और सचित्त सन्मित्र अतिचार वतलाये गए हैं उनकी संगति नहीं बैठती। इसी प्रकार अतिथिसंवि. भागके अतिचारों में जो सचित्त निक्षेप और सचित्त विधान अतिचार बतलाये गए हैं वे भी संगत नहीं होते ॥ २६-३५ ।। आगे त्रस जीवोंका वर्णन करते हैं
वपक्षप्रमतयो जीवा गवितास्त्रससंहिताः। रासयुक्तिकपर्वाया द्वीन्द्रियाः सन्ति जन्तवः ।। ३६ ॥ कोरिया गांवता लोक मरकुणाचकावयः। चतुरक्षा मता जीवा मशकामक्षिकादयः ।। ३७ ।। पञ्चाक्षाः सन्ति लोकेऽस्मिन् नगवाश्वसुरादयः । सूक्ष्मवावरभेदेन स्थावरा द्विविधा मताः ॥ ३८ ॥ प्रत्येकास्त्रसजीवास्तु बावरा एव सम्मताः। पञ्चेन्द्रियास्तिर्यष्चश्व संधपसंशिप्रभेवतः॥ ३९ ॥ द्विविधा गविता लोके संझिनो नसुरादयः । तिर्यकपञ्चेन्द्रिया लोके त्रिविधाः कथिता जिनः॥ ४० ॥ जलस्थलाचारित्वानऋगोपतगावयः। आर्यम्लेच्छाख्यभेदेन द्विविधाः सन्ति मानवाः॥४१॥ चणिकायभेवत्त्वाच्चतुर्धाः सन्ति निर्जराः । एतासो जीवजातीनां रक्षणं प्रथमं व्रतम् ॥ ४२ ॥ षटकायजीवजातीनां रक्षणान् बहिरङ्गतः । रागादीनां विभावानां वारणादन्तरङ्गतः ॥ ४३ ॥ महावतं भवेत्साबोरहिता संहितं ध्रुवम् ।
अथाने कथयिष्यामि सत्यं नाम महाव्रतम् ॥ ४४ ।। अर्थ-द्वीन्द्रिय आदि जीव घस कहलाते हैं । शंख. सोप तथा कौड़ी आदि दोन्द्रिय जीव है। खटमल तथा विच्छ आदि जोव लोकमें त्रोन्द्रिय कहे गये हैं। मशक तथा मक्खो आदि चतुरिन्द्रिय जीव माने गये हैं और मनुष्य, गाय, घोड़ा तथा देव आदि इस संसार में पञ्चेन्द्रिय हैं। सूक्ष्म और बादरके भेदसे स्थावर जोष दो प्रकारके माने गये हैं परन्तु प्रत्येक