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प्रशस्ति
चारित्रचिन्तामणिरेष पुंसा
मनोरयान् पूर्णतरान् करोतु । संत्यज्य भोगाम् भवपातहेतुन्
जगज्जनाः स्वात्मपरा भवन्तु ।। १ ।। अर्थ-यह चारित्र-चिन्तामणि नन्थ पुरुषोंके मनोरथोंको परिपूर्ण करे और जगत्के जीव संसारपतनके कारणभूत' भोगोंको छोड़कर स्वकोय आत्मामें तत्पर हो---आत्मोय स्वभावमें रमण करें ॥१॥ शशि शशि बाणाशि मिते (२५११)
वोराने सोमवासरे रम्ये । अपराहो गगनतले
श्यामाब्दैः संवृते रचितः॥२॥ अर्थ-२५११ वीर-निर्वाण संवत्सरमें रमणीय सोमबारके दिन अपराह्न कालमें जबकि आकाश श्याम मेघोंसे घिरा हुआ था, यह ग्रन्थ रचा गया॥२॥ आषादमासीय बलक्षपक्षे
हरितुणालोलसरच्छ कक्षे। द्वितीय वारेण समागतायां
जयातिथौ पूति मयं जगाम ॥ ३ ॥ अर्थ-हरे-हरे घासके समूहसे जब वन सुशोभित है तब आषाढ़ मासके शुक्ल पक्षकी द्वितीय' बार' आई हुई जया तिथि-अष्टमी तिथि में यह ग्रन्थ पूर्णताको प्राप्त हुया ।। ३ ।। १. निन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा च तिथयः क्रमात्' ज्योतिष के इस उल्लेखा
नुसार प्रत्येक पक्ष में प्रतिपदा से लेकर पञ्चमी तक नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा ये पांच तिथियां आती हैं। पुनः एष्ठी से दशमी तक यही नन्दा आदि तिथियां और एकादशी से पूर्णिमा तक पुनः इसी नाम से तिथियों आती हैं। इस तरह नन्दा आदि तिथियां प्रत्येक पक्ष में तीनतीन बार आती है । अतः अष्टमी दूसरी बार आई हुई जया तिथि है।