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द्वादश प्रकाश
अर्थ. अन्यविवाह करण- अपनो या अपने आश्रित सन्तानको छोड़कर दूसरोंका विवाह करना, परिगृहीतत्वरिकागति-दूसरेके द्वारा गृहोत कुलटा स्त्रियोंसे व्यवहार रखना, अपरिगृहीतत्त्वरिका गति-दूसरेके द्वारा अगृहोत कुलटा स्त्रियोंसे व्यवहार रखना, अनङ्गक्रीड़ा-काम-सेवनके लिये निश्चित अङ्गोंसे अतिरिक्त अङ्गों द्वारस क्रीड़ा करना और तीव कामेच्छा-काम-सेवनमें तोव लालसा रखना, ये ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार है। इन सबका त्याग कर व्रतको निर्मल करना चाहिये ।। ५०.५१ ॥
क्षेत्रवास्वो रुक्मभमणोधनमाययोस्तया। वासवास्योस्तयाकुप्प भाजयोश्च व्यतिक्रमः ।। ५२ ।। एते पञ्च परिप्रोक्ता अतिचारा जिनागमे ।
त्याज्याः स्वहित कामवं पञ्चमाणु व्रतस्य हि ।। ५३ ॥ अर्थ-क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिकम-खेल व मन मनाया उल्लङ्घन करना, रुक्मभमप्रमाणातिक्रम--चांदी, स्वर्णकी सोमाका उल्लंघन करना, धनधान्यप्रमाणातिकार-गाय-भैस आदि पशुधन और गेह, प्रान, चना आदि अनान की सोमाका व्यक्तिकम करना, बासीदासप्रमाणातिकम-संपत्ति रूपसे स्वीकृत दासोदासके प्रमाणका उल्लंघन करना और कुष्यभाण्डप्रमाणातिम-वस्त्र तथा बर्तनोंकी सोमाका व्यतिक्रम करना, ये परिग्रह परिमाण व्रतके अतिचार हैं। आत्महितके इच्छुक मनुष्योंको इनका त्याग करना चाहिये ।। ५२-५३ ।। आगे गुणवतोंके अतिचार कहते हैं
विग्नतके अतिचार अज्ञानाद्वा प्रमावाद्वा ह्यूय सीमध्यतिक्रमः। अधोग्यतिक्रमश्चंय तिर्यक्सीम व्यतिक्रमः ।। ५४ ॥ लोभावा क्षेत्र विश्व ह्याधाममन्पास्मृतेः ।
अतिचारा इमे स्याज्याः काष्ण व्रतममीसुभिः ।। ५५ ॥ अर्थ-प्रमाद अथवा अज्ञानसे ऊर्ध्व सोमाका उल्लंघन करना, अधः-नोचे जानेको सीमाका उल्लंघन करना. तिर्यक् सोमा-समान धरातलको सोमाका उल्लंघन, लोभवश किसो दिशाको सोमा घटाकर अन्य दिशाको सोमामें वृद्धि कर लेना और कुत सीमाको भूलकर अन्य