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सम्यक्तरिम-चिन्तामणिः आगे अनुप्रेक्षाधिकारका समापन करते हैंभन्या इमा वावशमाधना ये
स्थिरेण चित्तेन हि भावयन्ति । ने ग्रन्थ्यमुद्रापरिरक्षणे ते
__ शक्ता भवेयुनियमेन भव्याः ॥ १२४॥ अर्थ-जो भव्य पुरुष, स्थिर चित्तसे इन उत्तम बारह भावनाओंका चिन्तवन करते हैं वे नियमसे निर्धन्य मुद्राकी रक्षा करनेमें समर्थ होते हैं ॥ १२४ ॥
इस प्रकार सम्यक्-चारित्र-चिन्तामणिमें अनुप्रेक्षाओंका
वर्णन करने वाला अष्टम प्रकाश पूर्ण हुआ।
नवम प्रकाश ध्यान सामग्री
मङ्गलाचरणम् ध्यानेन भिस्वा भवबन्धनानि
रागाविदोषोनियन्धनानि । प्रापुः प्रियां मुक्तिमनस्विनी ये
सिद्धान् विशुद्धान् सततं नुमस्तान् ॥ १॥ अर्थ-जो ध्यानके द्वारा रागादि दोषरूप तीन कारणोंसे मुक्त संसारके बन्धनोंको तोड़कर मुक्तिरूपो गौरवशालिनी प्रियाको प्राप्त कर चुके हैं, मैं विशुद्ध परिणामोंसे युक्त उन सिद्ध परमेष्ठियोंको बारबार स्तुत करता हूँ ॥ १॥ अब चित्तकी स्थिरताके लिये ध्यानकी सामग्रोका वर्णन करते हैं
अथ वक्ष्ये गुणस्थानं मार्गणासु यथाक्रमम् ।
ध्यान तत्त्वस्य सिद्धयर्थं यथाबुद्धि ययागमम् ॥ २॥ १. श्रेष्ठाः ।