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सप्तम प्रकाश
भावार्थ - श स और व ब के उच्चारण में अधिकांश अशुद्धता होती है और उच्चारणकी अशुद्धतासे अर्थ में भी विपरीतता आ जाती है । जैसे - सकृत् का अर्थ एकबार है और यकृतका अर्थ विष्टा है । सकलका अर्थ सम्पूर्ण है और शकलका अर्थ एक खण्ड है । बाल का अर्थ केश है और बाल का अर्थ वालक या अज्ञानी है । श का उच्चारण तालसे होता है और स का उच्चारण दाँतोंसे होता है, अतः उच्चारण करते समय जिल्लाका स्पर्शवत् तत् स्थानोंपर करना चाहिये ।
अव अर्थाचारका स्वरूप कहते हैं
यद् व्यज्जनस्य यो ह्यर्थः संगतो विद्यते भुवि । तस्यैवाधारणा कार्या ह्यर्थाचारः स उच्यते ।। ५४ ।। अर्थ – जिस शब्दका जो अर्थ लोकमें संगत होता है उसीकी अवधारणा करना अर्थाचार कहलाता है ॥ ५४ ॥
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भावार्थ - कहोंपर विपरीत लक्षणका प्रयोग होनेसे विधिरूप कथनका निषेधपरक अर्थ किया जाता है। जैसे किसीके अपकारसे खिन्न होकर कोई कहता है कि आपने बड़ा उपकार किया, आपने अपनी सज्जनताको विस्तृत किया, आप ऐसा करते हुए सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहें । यहाँ विपरीत लक्षणाका प्रयोग होनेसे विधिपरक अर्थं न लेकर निषेधपरक अर्थ लिया गया है अथवा 'नरक जाना है तो पाप करो' यहां पाप करो इस विधि वाक्यका अर्थ निषेधपरक है । पाप करोगे तो नरक जाना पड़ेगा इसलिये पाप मत करो ।
आगे उभ्याचारको चर्चा करते हैं
वाकशुद्धेरथं शुद्धेश्च युगपद् धारणा तु या । उभयोः शुद्धिराख्याता सा शास्त्रज्ञधुरंधरे ॥ ५५ ॥ ज्ञानाचारस्य सम्भेदा अष्टौ प्रोक्ताः समासतः । इतोऽग्रे वर्ण्य आचारश्चारित्राचारसंज्ञितः ।। ५६ ।।
अर्थ - वाक् शुद्धि व्यञ्जनशुद्धि और अर्थ शुद्धि दोनों को एक साथ धारणा करना उभयशुद्धि कहीं गई है अर्थात् शब्दका शुद्ध उच्चारण और शुद्ध अर्थके एक साथ अवधारण करने को शास्त्रके श्रेष्ठ ज्ञाता उभयशुद्धि
1. उपकृतं बहु तत्र किमुच्यते सुजनता प्रथिता भवता परा । विदधदशमेव सदा सने सुखितमास्स्व ततः प्राशं शतम् ॥
साहित्यदर्पण