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का गाया ७२८
बहुरि नवम कोठा विषै
योग, तहां मन के व्यारि, तिनकी सी म ४ । वचन के व्यार, तिनकी अंसी व ४ काय के विषे श्रदारिकादिकनि की असी औ मि । वैमि । श्रा । श्रामि का 1 अथवा श्रदारिक, श्रदारिकमिश्र sfr दोऊनि की जैसी थौ २ । वैकि far को असी २ । श्राहारक द्विक की असी श्री २ | बहुरि सयोगी के सत्य, अनुभय, मन-वचन पाइए । तिनको जैसी म २ । २ । बहुरि बेंद्रियादिक के अनुभव वचन पाइए, साकी जैसी अतु व १ । सहनानी है ।
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बहुरि दशवां कोठा विर्षे वेद, तहां नपुंसकादिक की भैसी न। पु । स्त्री सहनानी है ।
बहुरि ग्यारहवां कोठा विषै कषाय, तहां क्रोधादिक की अँसी क्ररे । मा । माया । लो ! सहनानी है । बहुरि बारह्नां कोठा विषे ज्ञान, तहां कुमति, कु, विभंग की असी कुम । कुश्रु । दि । श्रथवा इन तीनों की सी कुज्ञान ३ । बहुरि मतिज्ञानादिक की म । श्रु । अ । म । के । अथवा मति, श्रुत, अवधि तीनों की जैसी मत्यादि ३ । मति श्रुत, अवधि, मन:पर्यय की असी भत्यादि ४ । सहनानी है।
बहुरि तेरहवां कोठा विषै संयम, तहां संयमादिक की जैसी अ । दे । सा । छे । प । सू । य । सहनानी है ।
afraterni कोठा विषे दर्शन, तहां चक्षु आदि की असी च । श्रव । ग्रवः के । अथवा चक्षु अचक्षु अवधि तीनों की असी चक्षु आदि ३ सहनानी है ।
बहुरि पंद्रह्वां कोठा विषै लेश्या, तहां द्रव्य लेश्या की सहनानी सीद्र । याके आगे जितनी द्रव्य लेश्या पाइए, तितने का अंक जानना । बहुरि भाव लेश्या की सहनानी असी भा । याके आगे जितनी भावलेश्या पाइए तितने का अंक जानना । दोक ही जागे कृष्णादिक नामनि की असी । नी । क । इनि तीनों की असी अशुभ ३ | तेज आदिक की जैसी ते । पशु । इन तीनों की वैसी शुभ ३ । सहनानी जाननी ।
बहुरि सोलहवां कोठाविषं भव्य, सो भव्य अभव्य की जैसी भ । श्र । सहनाती है।
सतरहवां कोठा विषै सम्यक्त्व, तहां मिथ्यादिक की असी मि । सा । मिश्र | उ । वे । क्षा । सहनानी है ।