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सम्यानामपद्रिका भाषाढीका ]
। ७६३ समुद्धात अपेक्षा, पर्याप्त-अपर्याप्त जीवसमास जानने । बहुरि कायमार्गणा की रचना विर्षे जहां सत्तावन, अठ्याररावे, च्यारि से छह जीवसमास कहे हैं, ते यथासंभव पर्याप्त, अपर्याप्त सामान्य प्रालाप विष जानि लेने। बहुरि वनस्पती रचना विर्षे प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित प्रत्येक बादर सूक्ष्म, नित्य-इतर निमोद के पर्याप्त अपर्याप्त की अपेक्षा यथासंभव जीवसमास बारह मैं आदि देकरि जानने ।
बहुरि तीसरा कोठा विर्षे पर्याप्ति, सो पर्याप्ति जितनी पाइए, तिनके अंक ही लिखिए है, नाम नाहीं लिखिए है । तहां जैसा जानना छह तौ संज्ञी पंचेंद्री के, पंच प्रसंशी या विकलत्रय के, च्यारि एकेंद्री के जानने । ते पर्याप्त पालाप विर्षे तो पर्याप्त जानने । अपर्याप्त आलाप विर्षे अपर्याप्त जानने । सामान्य श्रालाप विष ते दोय दीय बार जहां लिखे होह, तहां पर्याप्त, अपर्याप्त दोऊ जानने ।
बहरि चौथा कोठा विर्षे प्राण, ते प्राण जितने पाइए हैं तिनके अंक ही लिखिए है, नाम नाहीं लिखिए है। तहां असा जानना ।
पर्याप्त पालाप वि तौ दश संज्ञी के पर नव प्रसंज्ञी के पाट चौंद्रिी के, सात तेंद्री के, छह बद्री के, च्यारि एकेंद्रो के, बहुरि च्यारि सयोगी के, एक अयोगी का यथासंभव जानने । बहुरि अपर्याप्त आलाप विर्षे सात संज्ञी के, सात असंज्ञी के, छह चौद्री के, पांच तेंद्री के, च्यारि बेंद्री के, तीन एकेंद्री के, बहुरि दोय सयोगी के, यथासंभव जानने । बहुरि जहां सामान्य प्रालाप विर्षे ते पूर्वोक्त दोऊ लिखिए, तहां पर्याप्त अपर्याप्त दोऊ जानने ।
बहुरि पांचवां कोठा विर्षे संज्ञा, तहां श्राहारादिक की असी सहनानी है प्रां । भ। मे। प। .
बहुरि छठा कोठा विर्षे गति, तहां नरकादिक की जैसी सहनानी है न । ति । म । दे।
बहुरि सातवां कोठा विर्षे इन्द्रिय, तहां एकेंद्रियादिक की असी सहनानी है ए।बें । तें। चौं। पं।
बहुरि पाठयां कोठा विर्षे काय, सो पृथ्वी आदि की औसी पृ । अ। ते। था। व। बहुरि पांचों ही स्थावरनि की असी-स्था ५. बहुरि प्रस की औसी त्र । सहनानी हैं।