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. [ मशार जीपकापट पापा ६६१.१२
संयत गुणस्थान विर्षे ही है । तहां जीवसमास एक संनी पर्याप्त है। बहुरि सामायिक छेदोपस्थापना संयम प्रमत्तादिक अनिवृत्तिकरण पर्यंत च्यारि गुणस्थानन विर्षे है । वहां जीवसमास संज्ञी पर्याप्त अर आहारक मिश्र अपेक्षा अपर्याप्त ए दोय हैं । बहुरि परिहारविशुद्धि संयम प्रमत्त अप्रमत दोय गुणस्थाननि विर्षे ही है । तहां जीवसमास एक बैनी पर्याप्त हैं। बाद इन राहिहारक होइ नाहीं । बहुरि सूक्ष्मसांपराय संयम सूक्ष्मसापराय गुणस्थान विर्षे ही है । तहां जीवसमास एक सैनी पर्याप्त है । बहुरि यथाख्यात संयम उपशांतकषायादिक च्यारि गुणस्थाननि विर्षे है। तहां जीवसमास एक संनी पर्याप्त अर समुद्घात केवली की अपेक्षा अपर्याप्त ए दोय हैं। बहुरि सिद्ध विर्षे संयम नाहीं है, जाते चारित्र है, सो मोक्ष का मार्ग है, मोक्षरूप नाहीं है, असे परमागम विर्षे कहा है। । चउरक्खथावराविरबसम्माविट्ठी दु खोणमोहो स्ति। . .... चक्खु-अचक्खू-ओहो, जिणसिद्ध केवलं होदि ॥६६॥
चतुरक्षस्थावराविरतसम्यग्दृष्टिस्त क्षीरसमोह इति ।
चक्षुरचक्षुरवधिः, जिनसिद्ध केवलं भवति ॥६९१॥ टीका - दर्शनमार्गणा विर्षे चक्षुदर्शन है। सो चौइंद्री मिथ्यादृष्टी आदि क्षीणकषाय पर्यंत बारह गुणस्थान विर्षे है । तहां जीवसमास चौइंद्री, सैनी पंचेद्री असैनी पंचेंद्री पर्याप्त वा अपर्याप्त ए छह हैं । बहुरि प्रचक्षु दर्शन स्थावरकाय मिथ्या दृष्टी आदि क्षीणकषाय पर्यंत बारह गुणस्थान विर्षे हैं । तहां जीवसमास चौदह हैं । बहुरि अवधि दर्शन प्रसंयतादि क्षीणकषाय पर्यंत नव मुरणस्थान विर्षे है । तहां जीवसमास सैनी पर्याप्त वा अपर्याप्त दोय हैं। बहुरि केवलदर्शन सयोग - प्रयोग दोय गुणस्थान विर्षे है । तहां जीवसमास केवलज्ञानवत् दोय हैं और सिद्ध विर्षे भी केवल दर्शन है।
थावरकायप्पहुदी, अविरदसम्मो त्ति असुह-तिय-लेस्सा । सण्णीदो अपमत्तो, जाव दु सुहतिणिलेस्साओ ॥६६२॥
स्थावरकायप्रभृति, अविरतसम्यगिति अशुभत्रिकलेश्याः । ...... संशितोऽप्रमत्तो यावत्तु शुभास्तिस्रो लेश्याः ।।६९२॥
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