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सम्बशामनिका भाषाटीका ]
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टीका -- जो जीव सम्यक्त्व से पडया अर मिथ्यात्व कौं यावत् प्राप्त न भया, तावत् काल सासादन है; जैसा जानना । सो दर्शन मोह ही की अपेक्षा पांचवां पारणामिक भाव करि संयुक्त है, जात चारित्र मोह की अपेक्षा अनंतातुबंधी के उदय ते सासादन हो है, तातै इहां औदविक भाव है । यहु सासादन जुदी ही जाति का श्रद्धान रूप सम्यक्त्व मार्गरणा का भेद जानना ।
सहहणासहहणं, जस्सय जीवस्स होइ तच्चेस। बिरयाविरयेण समो, सम्मामिच्छो ति पायव्यो ॥६५॥ .
श्रद्धानाश्रद्धानं, यस्य च जीवस्य भवति तत्त्वेषु ।
विरताविरतेन समः, सम्यग्मिथ्या इति ज्ञातन्यः ॥६५५।। टीका -जिस जीव के जीवादि पदार्थनि विर्षे श्रद्धान वा प्रश्रद्धान एक काल विर्षे होइ, जैसे देशसंयत के संयम वा असंयम एक काल हो है; तैसे होइ, सो जीव समानियाष्टी है, अंग्रा लानना । यह सम्यक्त्व मार्गणा का मिथ नामा भेद कहा है।
मिच्छाइट्ठी जीवो, उबइठं पवयंणं ण सद्दहदि । सद्दहदि सम्भावं, उदइठं वा अणुवइलैं॥६५६॥
मिथ्याष्टिीवः उपदिष्टं प्रवचनं न श्रद्दधाति ।
श्रद्दधाति प्रसद्भाव, उपदिष्टं वा अनुपदिष्टम् ॥६५६॥ टोका - मिथ्यादृष्टी जीव जिन करि उपदेशित असे प्राप्त, पागम, पदार्थ, तिनिका श्रद्धान करै नाहीं। बहुरि कुदेवादिक करि उपदेश्या वा अनुपदेश्या झूठा
आप्त, आगम, पदार्थ, तिनिका श्रद्धान कर है। यह सम्यक्त्व मार्गणा का मिथ्यात्व नामा भेद कह्या । असे सम्यक्त्व मार्गणा के छह भेद कहे । उपशम, क्षायिक, सम्यक्त्व का विशेष विधान लब्धिसार नामा ग्रंथ विर्षे कहा है । ताके अनुसारि इहां भाषा टीका विर्षे प्रागें किछू लिखेंगे, तहां जानना ।
आगें सम्यक्त्व मार्गणा विर्षे. जीवनि की संख्या तीन गाथानि करि कहै हैंवासपुधत्ते खइया, संखेज्जा जइ हवंति सोहम्मे । तो संखपल्लठिविये, केवडिया एवमणुपादे ॥६५७॥