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सम्यग्नानचन्द्रिका भाषाटोका 1
[ ६२६ टीका..... बहुरि समुद्घात विर्षे असे स्वस्थानयत् किछ घाटि असनाली के चौदह भागनि विर्ष आठ भाग प्रमाण स्पर्श जानना. वा मारणांतिक समुद्धात अपेक्षा किछ बाटि असनाली के चौदह भागनि वि नव भाग प्रमाण स्पर्श जानना । बहुरि उपपाद विर्षे त्रसनाली के चौदह भागनि विर्षे किछु घाटि डचोढ भाग प्रमाण स्पर्श जानना । जैसे सामान्यपन तेजोले श्या का तीनों स्थानकनि विर्षे स्पर्श कह्या ।
___ बहुरि विशेष करि दश स्थानानि विर्ष पर्श कहिए है । तिर्यग्लोक एक राजू का लम्बा, चौडा है; तिसविर्षे लवणोद, कालोदक, स्वयंभूरमण इनि तीनि समुद्रनि विर्षे जलचर जीव पाइए हैं । अन्य समुद्रनि विर्षे जलचर जीव नाहीं; सो जिनि विर्षे जलचर जीव नाहीं, तिनि सर्व समुद्रनि का जेता क्षेत्रफल होइ, सो तिस तिर्यग्लोकरूप क्षेत्र विषं घटाए, अपशेषता क्षेत्र रहे, तिलग पील, पद्म, शुक्ललेश्यानि का स्वस्थान स्वस्थान विर्षे स्पर्श जानना । जाते एकेंद्रियादिक के शुभल श्यानि का अभाव है । सो कहिए हैं
जंबूद्वीप तें लगाइ स्वयंभूरमण. समुद्र पर्यंत. सर्व द्वीप - समुद्र दुरणां दुणां विस्तार कौं धरै हैं। तहां जंबूद्वीप लाख योजन विस्तार कौं धरै हैं; याका सूक्ष्म तारतम्य रूप क्षेत्रफल कहिए हैं
सत्त रणय सुण्ण पंच य, छष्णव चउरेक पंच सुरणं च । ___ याका अर्थ - सात, नव, बिंदी, पंच, छह, नव, च्यारि, एक, पांच, विदी इतने अंकनि करि जो प्रमाण भया, तितना जंबूद्वीप का सूक्ष्म क्षेत्रफल है (७९०५६६४१५०) सो एतावन्मात्र एक खण्ड कल्पना कीया । बहुरि असे असे लवण समुद्र विष खण्ड कल्पिए, तब चौईस (२४) होइ । धातकीखड विर्षे एक सौ चवालीस (१४४) होछ । कालोद समुद्र विर्षे छ से बहत्तरि (६७२) होइ । पुष्कर द्वीप विर्ष अठाइस से असी (२८८०) होइ । पुष्कर समुद्र विष ग्यारह हजार नब से च्यारि (११९०४) होइ । वारुणो द्वीप विर्षे अड़तालीस हजार तीन से चौरासी (४८३८४) होइ । वारुणी समुद्र विषं एक लाख पिचारावे हजार बहत्तरि (१६५०७२) होइ । क्षीरवर द्वीप विर्षे सात लाख तियासी हजार तीन से साठि (७८३३६०) होइ । क्षीरवर समुद्र विषै इकतीस लाख गुणतालीस हजार पांच से चउरासी (३१३६५८४). होइ । असें स्वयंभूरमण समुद्र पर्यंत विर्षे खंड साधन करना इनि खंडनि के प्रमाण का ज्ञान होने के निमित्त सूत्र कहिए हैं