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सम्यकामचन्द्रिका भाषा होका !
[ ५३९ अंगुलासंख्यभागे, द्रव्यविकल्पे गते तु क्षेत्रे।
एकाकाशप्रदेशो, वर्धते संपूर्णलोक इति ॥३९९॥ टोका -सूच्यंगुल का असंख्यातवां भागप्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद होते संत, क्षेत्र विषं एक माकाश का प्रदेश बधै असा अनुक्रम जघन्य देशावधि के क्षेत्र तें, उत्कृष्ट देशावधिज्ञान का विषयभूत सर्व संपूर्ण लोक, तीहिं पर्यंत जानना । सो यह कथन टीका विषं पूर्व विशदरूप कह्या ही था।
प्रावलिअसंखभागो, जहण्णकालो कमेण समयेण । बड्ढदि देसोहिवरं, पल्लं समऊणयं जाव ॥४००॥
आवस्यसंख्यभागो, जघन्यकालः क्रमेण समयेन ।
वर्धते देशावधिवरं, पल्यं समयोनकं यावत् ॥४००। टोका - देशावधि का विषयभूत जघन्य काल आवली का असंख्यातवां भाग प्रमाण है । सो यहु अनुक्रम ते ध्रुववृद्धि करि अथवा अध्र बवृद्धि करि एक एक करि समय करि तहां पर्यंत बधै, जहां एक समय घाटि पल्य प्रमाण उस्कृष्ट देशावधि का विषयभूत काल होइ, उत्कृष्ट देशावधिज्ञान एक समय घाटि पल्पप्रमाण अतीत, अनागत काल विर्षे भए वा होंहिगे जे स्वयोग्य विषय तिनै जाने है ।
प्रागै क्षेत्र काल का परिमाण उगणीस कांडकनि विर्षे कह्या चाहै है । कांडक नाम पर्व का है। जैसे साठे को पैली हो है, सो गांठि ते अगिली गांठि पर्यंत जो होइ, ताकी एक पर्व कहिए । तैसे किसी विवक्षित भेद तें लगाइ, किसी विवक्षित भेद पर्यंत जेते भेद होंहि, तितिका समूह, सो एक कांडक कहिए । प्रैसे देशावधिज्ञान विर्षे उगणीस कांडक हैं ।
___ तहां प्रथम कांडक विर्षे क्षेत्र काल का परिणाम प्रदाई गाथानि करि
अगुलअसंखभाग, धुवस्वेण य असंखवारं तु । प्रसंखसंखं भागं, असंखवारं तु अद्धवगे ॥४०१॥
अंगुलासंख्यवारं, ध्रुवरूपेण च असंख्यधारं तु । असंख्यसंख्यं भागं, असंख्यकार तु अध्रुवगे ॥४०१॥