________________
2.4ion
५३८ ]
[ मोम्मटसार जीवका गाया ३६७-३२८-३६६
आगें जिस भेद विषै विस्रसोपचय रहित केवल मनोवरणा को जाने है । तहां इनि पांच स्थानानि विषै क्षेत्र का प्रमाण असंख्यात द्वीप - समुद्र जानना । श्रर काल असंख्यात वर्षमात्र जानना । पूर्वोक्त पंच भेद लीए अवधिज्ञान असंख्यात द्वीप समुद्र fai gain air संख्यात वर्ष पर्यंत अतीत, अनागत, यथायोग्य पर्याय के धारी, तिनकों जाने है। परि इतना विशेष है - जो इनि पंच भेदनि विषै पहिला भेद संबंधी क्षेत्रकाल का परिमाण है । तातें दूसरा भेद संबंधी क्षेत्रकाल का परिणाम असंख्यातगुणा है । दूसरे ते तीसरे का असंख्यात गुणा है । औसे ही पांचवां भेद पर्यंत जानना | सामान्यप सब का क्षेत्र श्रसंख्यात द्वीप - समुद्र वर काल असंख्यात वर्ष कहे हैं; जातें असंख्यात के भेद घने हैं ।
1
ततो कम्मइयस्सिगिसमयपबद्धं विविस्ससोवचयं । धुवहारस्स विभज्ज, सव्वोही जाव ताय हवे ॥३६७॥ ततः कार्मणस्य, एकसमयप्रबद्धं विविस्रसोपचयम् । ध्रुवहारस्य विभाज्यं सर्वावधिः यावतावद्भवेत् ॥ ३९७ ।।
टीका वहां पीछे लिस मनोवर्मणा कौं प्रबाहार का भाग दीजिए, से हो भाग देते देते विसोपचय रहित कार्माण का समय प्रबद्धरूप द्रव्य होइ । याक भी ध्रुवहार का भाग दीजिए। भैंसे ही ध्रुबहार का भाग यावत् सर्वावधिज्ञान होइ, वहां पर्यंत जानना । विसोपचय का स्वरूप योगमार्गणा विषै कया है, सो जानना ।
एहि विभज्जते, दुधरिमदेसाव हिम्मि वग्गरणयं ।
aft कम्मsuffrवग्गणमिनिवारभजिदं तु ॥ ३६८ ॥
एतस्मिन् विभज्यमाने, द्विचरमदेशावधौ वर्गणा । चरमे कार्मणस्वर्गणा एकबारभक्ता तु ॥३९८।।
टीका
aft का
इस काम समय प्रबद्ध की धुवहार का भाग दीएं संतें देशाचरम भेद विषै कार्मारणवरणा रूप विषयभूत द्रव्य हो है; जातें ध्रुवहार मात्र वर्गगानि का समूह रूप समयप्रबद्ध है । बहुरि याक एक बार बहार का भाग दीएं, चरम जो देशावधि का अंत का भेद, तिस विषै विषयभूत द्रव्य हो है ।
—
अंगुल संखभागे, वयवियप्पे गये दु खेत्तम्हि | एगागासपदेसो, बढदि संपुण्णलोगो त्ति ॥ ३६६ ॥