________________
u
-
n
iamin
..-...--.
-IT
H
AI
-
H
५४. ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ४०२ टोका --- धनांगुल की पावली का भाग दीएं, जो प्रमाण पावै, असा अंगुल का असंख्यातवां भागमात्र ध्र वरूप करि वृद्धि का प्रमाण हो है । सो ध्रुववृद्धि प्रथम कांडक विषं अंत का भेद पर्यंत असंख्यात बार हो है । बहुरि तिस ही प्रथम कांडक विर्षे अंत का भेद पर्यंत अध्र ववृद्धि भी असंख्यात बार हो है । सो अघ्र बवृद्धि का परिमारण धनांगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण वा धनांगुल का संख्यातवां भाग प्रमाण है।
धुवअद्धवरूवरण य, अवरे खेत्ताम्म वढिदे खेत्ते। . : ... प्रवरे कालम्हि पुरणो, एक्केक्कं वड्ढदे समयं ॥४०२॥
ध्रुवाध्रुवरूपेण च, अवरे क्षेत्रे वद्धिते क्षेत्रे।
अवरे काले पुनः, एकको वर्धते समयः ॥४०२॥ टीका - तीहि पूर्वोक्त ध्र ववृद्धि प्रमाण करि वा अध्र वृद्धि प्रमाण करि जघन्य देशावधि का विषयभूत क्षेत्र को . बधतै सतै जघन्य काल के ऊपरि एक एक समय बधै है।
भावार्थ ---- पूर्वं यह क्रम कहा था, जो द्रव्य की अपेक्षा सूच्यंगुल का असंख्यातवा भागप्रमाण भेद व्यतीत होइ, तब क्षेत्र विर्षे एक प्रदेश बधै । अब इहां कहिए हैं-जघन्य ज्ञान का विषयभूत जेता क्षेत्र प्रमाण कह्या, ताके ऊपरि पूर्वोक्त प्रकार करि एक एक प्रदेश बचते बधः पावली का भाग धनांगल कौं दीएं, जो प्रमाण आवै, तितना प्रदेश बधै, तब जघन्य देशावधि का विषयभूत काल का प्रमाण कह्या था, ताते एक समय और बधता, काल का प्रमाण होइ । बहुरि तितना ही प्रदेश क्षेत्र विर्षे पूर्वोक्त प्रकार करि बधै तब तिस काल तें एक समय और बधता काल का प्रमाण होइ । असे तितने तितने प्रदेश बधे, जो काल प्रमाण विर्षे एक एक समय बंधे, सो तौ घ्र वृद्धि कहिये । बहुरि पूर्वोक्त प्रकार करि ही विवक्षित क्षेत्र से कहीं धनांगुल का असंख्यातवां भाग प्रमारण प्रदेशनि की वृद्धि भए पूर्व काल त एक समय बधता काल होइ, कहीं धनांगुल का असंख्यातबा (संख्यातवां): भाग प्रमाण प्रदेशनि की वृद्धि भएं, पहले काल तें एक समय बधता काल होइ, तहां अध्र ववृद्धि कहिये । असें.प्रथम कांडक विर्षे अंत भेद पर्यंत ध्र ववृद्धि होइ, तो असंख्यात बार हो है । बहुरि अघ्र ववृद्धि होइ तौ असंख्यात बार हो है ।।
IFE
--
--
-
-am
Animalbaumaarawrayा
१. सभी छहों हस्तलिखिन प्रतियों में असंख्यात मिला । छपि हुई प्रति में संख्यात है।