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सम्परमानकन्द्रिका भाषाटीका 1
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बहरि विनय है प्रयोजन जाका, सो बैनयिक नामा प्रकीर्णक कहिए । इसविर्षे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, उपचार संबंधी पंच प्रकार विनय के विधान का प्ररूपण है।
__बहुरि कृति कहिये क्रिया, ताका कर्म कहिए विधान, इसविर्षे प्ररूपिए है। सो कृतिकर्म नामा प्रकीर्मक कहिए । इसविर्ष अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु आदि नव देवतानि की वंदना के निमित्त आप आधीन होना; सो आत्माधीनता अर गिरद भ्रमणरूप तीन प्रदक्षिणा सर पृष्टी हैं मांस माह जोर नमवार पर शिर नवाइ च्यारि नमस्कार अर हाथ जोड़ि फेरनरूप बारह आवर्त इत्यादि नित्य - नैमित्तिक क्रिया का विधान निरूपिए है।
बहुरि विशेष रूप जे काल, ते विकाल कहिए । तिनिकों होते जो होय सो वैकालिक, सो दश वैकालिक इस विर्षे प्ररूपिए है, असा दशकालिक नामा प्रकोर्णक है । इस विष मुनिका प्राचार अर पाहार की शुद्धता अर लक्षण प्ररूपिए है।
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बहुरि उत्तर जिस विर्षे अधीयते कहिए पदिए; सो उत्तराध्ययन नामा प्रकोर्षक है । इस विर्षे च्यारि प्रकार उपसर्ग, बाईस परिषह, इनिके सहने का विधान वा तिनिका फल पर इस प्रश्न का यहु उत्तर असें उत्तर विधान प्ररूपिए है ।
बहुरि कल्प्य कहिए योग्य आचरण, सो व्यवह्रियते अस्मिन् कहिए प्रवृत्तिरूप कीजिए जाविर्षे असा कल्यव्यवहार नामा प्रकोर्णक है । इस विर्षे मुनीश्वरनि के योग्य प्राचरणनि का विधान अर अयोग्य का सेवन होते प्रायश्चित्त प्ररूपिए है।
बहुरि कल्प्य कहिए योग्य पर अकल्प्य कहिए अयोग्य प्ररूपिए हैं जाविर्षे, असा कल्प्याकल्प्य नामर प्रकीर्णक है । इसविर्षे द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा साधुनि कौं यहु योग्य है, यहु अयोग्य है; असा भेद प्ररूपिए है ।
बहुरि महतां कहिए महान् पुरुषनि के कल्प्य कहिए योग्य, असा प्राचरण जाविर्षे प्ररूपिए है, सो महाकल्प्य नामा प्रकीर्णक है । इसविर्षे जिनकल्पी महामुनिनि के उत्कृष्ट संहनन योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव विर्षे प्रवर्ते तिनके प्रतिमायोग वा आतापनयोग, अभ्रावकाश, वृक्षतल रूप त्रिकाल योग इत्यादि प्राचरण प्ररूपिए है। अर स्थविरकल्पीति की दीक्षा, शिक्षा, संघ का पोषय, यथायोग्य शरीर का समा