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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिकर भाषाका ].
बहुरि सूत्रयति कहिये मिथ्यादर्शन के भेदनि कौं सूचै, बतावै, ताको सूत्र कहिये । तिस दिय जीव अधर ही है; अकर्ता है; निर्गुण है; अभोक्ता है। स्वप्रकाशक ही है; परप्रकाशक ही है; अस्तिरूप ही है; नास्तिरूप ही है इत्यादि क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, बिनयवाद, तिनके तीन सै तरेसठि भेद, तिनिका पूर्व पक्षपने करि वर्णन करिये है।
बहुरि प्रथम कहिए मिथ्यादृष्टी अवती, विशेष ज्ञानरहित, ताकौं उपदेश देने निमित्त जो प्रवृत्त भया अधिकार - अनुयोग; कहिए सो प्रथमानुयोग कहिए । तिहिं विषं चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवति, नव बलभद्र, नव नारायण, नव प्रतिनारायण इनि तरेसठि शलाका पुरुषनि का पुराण वर्णन कीया है ।
बहुरि पूर्वगत चौदह प्रकार, सो प्रामें विस्तार में लीएं कहेंगे ।
बहुरि चूलिका के पंच भेद जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता, आकाशगता ए पंच भेद हैं ।
तिनि विर्षे जलगता चूलिका तौ जल का स्तंभन करना, जल विष गमन करना, अग्मि का स्तंभन करना, अग्नि का भक्षण करना, अग्नि विर्षे प्रवेश करना इत्यादि क्रिया के कारण भूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरणादि प्ररूप है । बहुरि स्थलगता चूलिका मेरुपर्वत, भूमि इत्यादि विषं प्रवेश करना शीघ्र गमन करना इत्यादिक किया के कारणभूत मंत्र तंत्र तपश्चरणादिक प्ररूप है। बहुरि मायागता चूलिका मायामई इन्द्रजाल विक्रिया के कारण भूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरणादि प्ररूप है । बहुरि रूंपगता चूलिका सिंह, हाथी, घोड़ा, वृषभ, हरिण इत्यादि नाना प्रकार रूप पलटि करि धरना; ताके कारण मंत्र, तंत्र, तपश्चरणादि प्ररूप है। वा चित्राम, काठ, लेपादिक का लक्षण प्ररूप है। वा धातु रसायन कौं प्ररूप है । बहुरि आकाशमता धूलिका - अाकाश विर्षे गमन प्रादि को कारण भूत मंत्र, तंत्रादि प्ररूप है.। जैसे चूलिका के पांच भेद जानने । ... ए चंद्रप्रज्ञप्ति प्रादि देकर भेद कहे । तिनिके पदनि का प्रमाण आगे कहिए है, सो हे भव्य तू जानि। .. . ..." गतनम मनगं गोरम, मरगत जवगात नोननं जजलक्खा ।
' मनमन धममननोनननामं रनधजधरानन जलादी ॥३६३॥