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| गोम्मसार गोवकाण्ड गाथा ३६१-३६२
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बहुरि अंग बाह्य जो सामायिकादिक, तिनि विषै 'जनकनमयसीम' कहिए पाठ, बिंदी, एक, बिदी, पाट, एक, सात, पांच अंक तिनिके पाठ कोडि एक लाख आठ हजार एक सै पिचत्तरि (८०१०८१७५) अक्षर. जानने। .
चंद-रवि-जंबुदीवय-दोधसमुद्दय-वियाहपण्णती। ...
परियम्मं पंचविह, सुत्तं पढमाणि जोगमदो ॥३६॥ । पुवं जल-थल-साया-पागासय-रूवमयमिमा पंच । भेदा हु चूलियाए, तेसु पमाणं इणं कमसो ॥३६२॥
चंद्ररविजंबूद्वीपकद्वीपसमुद्रकव्याख्याप्रजप्तयः । परिगर्म निषिधं, सूत्रं प्रथमानुयोगमतः ॥३६१॥
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पूर्व जलस्थलमायाकाशकरूपगता इमे पंच ।
मेवा हि चूलिकायाः, तेषु प्रमाणमिदं क्रमशः ॥३६२।। टोका --- दृष्टिवाद नामा बारहवां अंग के पंच अधिकार हैं - परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत, जूलिका ए पंच अधिकार हैं; तिनि विर्षे परितः कहिए मग ते कारिग कहिये जिन से गुणकार भागहारादि रूप गणित होइ, असे करणसूत्र, वे जिस विधं पाइए, सो परिकर्म कहिये यो परिकर्म पांच प्रकार हैं -- चंद्रप्रज्ञप्ति, सुर्यप्रज्ञप्ति, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, व्याख्याप्राप्ति ।
तहाँ चंद्रप्रज्ञप्ति - चंद्रमा का विमान, आयु, परिवार, ऋद्धि, गमनविशेष, वृद्धि, हानि, सारा, आधा, चौथाई ग्रहण इत्यादि प्ररूपै है । बहुरि सूर्यप्रज्ञप्ति - सूर्य का आयु मंडल, परिवार, ऋद्धि, गमन का प्रमाणा ग्रहण इत्यादि प्ररूपे है । बहुरि जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति - जंबूद्वीपसंबंधी मेरुगिरि, कुलाचल, द्रह, क्षेत्र, वेदी, वनखंड, व्यंतरनि के मंदिर, नदी इत्यादि प्ररूप हैं । बहुरि द्वीपसागरप्रशप्ति - असंख्यात द्वीप समुद्र संबंधी स्वरूप वा तहां तिष्ठते ज्योतिषी, व्यतर, भवनवासीनि के प्रावास तहां अकृत्रिम जिन मंदिर, तिनको प्ररूप है । बहुरि व्याख्याप्रज्ञप्ति - रूपी, अरूपी, जीव, अजीव प्रादि पदार्थनि का वा भव्य अभव्य आदि प्रमाण करि निरूपण कर है। असे परिकर्म के पंच भेद हैं।
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