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सम्परतामास्त्रिका भाषाटीका 1
टीका --- इहां वा मागे अक्षर संज्ञा करि अंकनि की कहैं हैं । सो याका सूत्र पूर्वं गतिमार्गणा का वर्णन विर्षे पर्याप्त मनुष्यनि की संख्या कही है। तहां कह्या है 'कटपयपुरस्थवर्णैः' इत्यादि सूत्र कहा है । तिस ही ते अक्षर संज्ञा करि अंक जानना। क कारादिक नब अक्षरनि करि एक, दोय आदि क्रम तें नव अंक जानने । र कारादि नव अक्षरनि करि नव अंक जानने । प कारादि पंच अक्षरनि करि पंच अंक जानने । य कारादि पाठ अक्षरनि करि पाठ अंक जानने । ज कार कारन कार इनिकरि बिंदी जानिये, असा कहि आए हैं । सो इहां वापरणनरनोनानं इनि अक्षरनि करि चारि, एक, पांच, बिंदी, दोय, बिंदी, बिंदी, बिंदी ए अंक जानना । ताके चारि कोडि पंद्रह लाख दोय हजार (४१५०२०००) पद सर्व एकादश अंगनि का जोड दीयें भये ।
__ बहुरि दृष्टियाद नाम बारहवां अंग, ता.वि 'कनज़तजमसामनम' कहिये एक, बिंदी, पाठ, छह, आठ, पांच, छह, बिंदी, बिंदी, पांच इनि अंकनि करि एक से आठ कोडि अडसठि लाख छप्पन हजार पाँच (१०६६८५६००५) पद हैं सो कहिये । मिथ्यादर्शन, तिनिका है अनुवाद कहिये निराकरण जिस विर्षे असा दृष्टिवाद नामा अंग बारहवां जानना ।
तहां मिथ्यादर्शन संबंधी कुवादी तीन से तरेसठि हैं। तिनि विर्षे कौत्कल, कांठेबिद्धि, कौशिक हरि, श्मश्रु माधपिक रोमश, हारीत, मुंड, प्राश्वलायन इत्यादि क्रियावादी हैं, सो इनिके एकसौ अस्सी (१८०) कुवाद हैं।
बहुरि मारीचि, कपिल, उलूक, गार्य, व्याघ्रभूति, वाइवलि, माठर, मौद्गलायन इत्यादि प्रक्रियावादी हैं, तिनिके चौरासी (८४) कुवाद हैं ।
___ बहरि साकल्य, वाल्कलि, कुसुत्ति, सात्यमुग्रीनारायण, कठ, माध्यंदिन, मौद, पप्पलाद, बादरायण, स्विष्टिक्य, दैत्यकायन, वसु, जैमिन्य, इत्यादि ए अज्ञानवादी हैं । इनिके सडसठि (६५) कुवाद हैं ।
बहरि वशिष्ठ, पाराशर, जतुकर्ण, वाल्मिकि, रोमहर्षिणि, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, उपमन्यु, ऐंद्रदत्त, प्रगस्ति इत्यादिक ए विनयवादी हैं । इनिके कुवाद बत्तीस
__ सब मिलाएं तीन सै तरेसठि कुवाद भये, इनिका वर्णन भावाधिकार विर्ष कहेंगे । इहां प्रवृत्ति विर्षे इनि कुवादनि के जे जे अधिकारी, तिनिके नाम कहे हैं।