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गोम्मटसार ओवकाण्ड गाथा ३४४
टीका - तिहि प्राभूतक के ऊपर पूर्वोक्त अनुक्रम तें एक एक अक्षर की वृद्धि नैली, पदादि की वृद्धि करि संयुक्त बीस प्राभृतक की वृद्धि होते संतै, वामें एक अक्षर घटाइये, वहां पर्यंत प्राभृतक समास के भेद जानने । बहुरि ताका अंत भेद विष यह एक अक्षर मिलायें, वस्तु नामा अधिकार हो है ।
भावार्थ- पूर्व संबंधी एक एक वस्तु नामा अधिकार विषे बीस बीस प्राभुतक पाइये हैं । बहुरि सर्वत्र अक्षर समास का प्रथम भेद से लगाइ पूर्वसमास का उत्कृष्ट भेद पर्यंत अनुक्रम तें एक एक प्रक्षर बढावना । बहुरि पद का बढ़ावना, बहुरि समास का ढावना इत्यादिक परिपाटी करि यथासंभव वृद्धि सबनि विष जानना; सो सूत्र के अनुसारि व्याख्यान टीका विषे करते ही आये हैं ।
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मैं तीन गाथानि करि पूर्व नामा श्रुतज्ञान कौं कहैं हैं दसचोदसद्ध अटारसयं बारं च बार सोलं च । वीसं तीसं पण्णारसं च, दस चदुसु वत्थूरणं ॥ ३४४॥
वंश चतुर्दशाष्ट श्रष्टावशक द्वादश च द्वादश पोडश च । विशति: त्रिशत् पंचदश च दश चतुर्षु वस्तूनाम् ||३४४१॥
टीका - तिहि वस्तु श्रुत के ऊपरि एक एक अक्षर की वृद्धि लीएं, अनुक्रम पदादिक की वृद्धि करि संयुक्त क्रम तें दश आदि वस्तुनि की वृद्धि होत संत, उनमें सौं एक एक अक्षर घटावनं पर्यंत वस्तु समास के भेद जानने । बहुरि तिनके अंत raft विषै अनुक्रम ते एक एक अक्षर मिलाएं, चौदह पूर्व नामा श्रुतज्ञान होइ । तहां श्रागे कहिए हैं ।
उत्पाद नामा पूर्व आदि चौदह पूर्व, तिनिविषं अनुक्रम तैं दश (१०), चौदह (१४), आठ (८), अठारह (१८), बारह (१२), बारह (१२), सोलह (१६), बीस (२० ), तीस (३०), पंद्रह (१५), दश (१०), दश (१०), दश ( १० ) ; दश (१०) वस्तु नामा अधिकार पाइए हैं ।
१ - पखंडागम-पवला पुस्तक ६, पृष्ठ २५ की टीका ।
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