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सध्याशानचत्रिका भाटोका !
उपाय-पुत्वगाणिय-विरियपवादस्थिणत्थियपवादे । णाणासच्चपवादे, आदाकम्मप्पवादे य ॥३४॥ पच्चाक्खाणे विज्जाणवादकल्लाणपाणवादे य । किरियाविसालपुवे, कमसोथ तिलोबिंदुसारे ३ ॥३४॥
उत्पादपूर्वाग्रायणीयवीर्यप्रवावास्तिनास्तिकप्रवादानि । ज्ञानसत्यप्रवादे, आत्मकर्मप्रवादे च ॥३४५।। प्रत्याख्यानं वीर्यानुवादकल्याणप्राणवादानि च ।
क्रियाविशालपूर्व, क्रमशः अथ त्रिलोकबिंदुसारं च ॥३४६।। टीका - चौदह पूर्वनि के नाम अनुक्रम ते असें जानने । १. उत्पाद, २. आग्रायणीय, ३. बीर्यप्रवाद, ४. अस्ति नास्ति प्रवाद, ५. ज्ञानप्रवाद, ६. सत्यप्रवाद, ७. आत्मप्रवाद, ८. कर्मप्रवाद, ६. सल्यानमार, १७. निलागुगाद, १३. कल्याणबाद, १२. प्राणवाद, १३. क्रियाविशाल, १४. त्रिलोकविदुसार ये चौदह पूर्वनि के नाम जानने ।
इनिकै लक्षण प्राग कहेंगे -- इहां असें जानना पूर्वोक्त वस्तुश्रुतज्ञान के ऊपरि क्रम ते एक एक अक्षर की वृद्धि लीएं, पदादिक की वृद्धि होते, दश बस्तु प्रमाण में स्यों एक अक्षर घटाइए, तहां पर्यंत वस्तु समास ज्ञान के भेद हैं । ताके अंत भेद विर्षे वह एक अक्षर मिलाएं, उत्पाद पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो है ।
बहुरि उत्पाद पूर्व श्रुतज्ञान के ऊपरि एक-एक अक्षर-अक्षर की वृद्धि लीयें, पदादि की वृद्धि संयुक्त चौदह वस्तु होंहि ।
तामैं एक अक्षर घटाइये, तहां पर्यंत उत्पादपूर्व समास के भेद जानने । ताके अंत भेद विर्षे वह एक अक्षर बध, अग्रायणीय पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो हैं । असें ही क्रम से आगे आगें पाठ आदि वस्तु की वृद्धि होते, तहां एक अक्षर घटायने पर्यंत तिस तिस पूर्व समास के भेद जानने । तिस तिस का अंत भेद विर्षे सो सो एक अक्षर मिलाएं, वीर्य प्रवाद आदि पूर्व नामा श्रुतज्ञान हो है ! अंत का त्रिलोकबिंदुसार नामा पूर्व प्रागै ताका समास के भेद नाहीं है । जाते याके आगे श्रुतज्ञान के भेद का अभाव है।