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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३३६ तितने हैं । बहुरि इसके अनंतरि उस्कृष्ट अक्षर समास के विर्षे एक अक्षर बधत पदनामा श्रुतज्ञान हो है।
सोलस-सय-चउतीसा, कोडी तियसीदिलक्खयं चैव । सत्तसहस्साट्ठसया, अट्ठासीवी य पदवण्णा ॥३३६॥
षोडशशतचतुस्लिंशत्कोटयः त्र्यशीतिलक्षकं चैद ।
सप्तसहस्राण्यष्टशतानि अष्टाशीलिश्च पदवर्णाः ॥३३६॥ तरीका - पद तीन प्रकार है -- अर्थपद, प्रमाणपद, मध्यमपद ।
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तहां जिहिं अक्षर समूह करि विवक्षित अर्थ जानिये, सों तो अर्थपद कहिये । जैसे कहा कि 'गामयाज शुक्लां दंडेन' इहां इस शब्द के च्यारि पद हैं - १. गां, २. अभ्याज, ३. शुक्ला, ४. दंडेन । ये च्यारि पद भए । अर्थ याका यह - जो गाय की बेरि, सुफेद कौं दंड करि । असें कहा कि 'अग्निमानय' इहां दोय पद भए । अग्नि, पानय । अर्थ यह जो - अग्नि को ल्याव । असे विवक्षित अर्थ के अर्थी एक, दोय आदि अक्षरनि का समूह, साकौं अर्थपद कहिये ।
बहुरि प्रमाण जो संख्या, तिहिने लीएं, जो पद कहिये अक्षर समूह, ताकौं प्रमाण पद कहिये । जैसें अनुष्टुप छंद के च्यारि पद, तहां एक पद के आठ अक्षर होइ ! 'नमः श्रीवर्द्धमानाय' यह एक पद भया । याका अर्थ यह जो श्रीवर्धमान स्वामी के अर्थि नमस्कार होहु; असे प्रमाणपद जानना ।
बहुरि सोलासे चौतीस कोडि लियासी लाख सात हजार आठसै अध्यासी (१६३४८३०७८८८) गाथा विर्षे कहे अपुनरुक्त अक्षर, तिनिका समूह सो मध्यमपद कहिये । इनिवि अर्थ पद पर प्रमाण पद तो हीन - अधिक अक्षरनि का प्रमाण कौं लोएं, लोकव्यवहार करि ग्रहण कीएं हैं । तातें लोकोत्तर परमागम विषं गाथा विर्षे कहो जो संख्या, तीहि विर्षे वर्तमान जो मध्यमपद, ताहीका ग्रहण जानना । ।
भाग संघात नामा श्रुतज्ञान की प्ररूपें हैं --
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१.पटांडाफम - धवला पुस्तक ६, पृष्ठ २३ की टीका ।