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sonateefan भावाटीका ]
greater उर्वार, एगेगेणक्खरेण वड्ढतो । संखेज्जसहस्तपदे, उड्ढे संघादणाम सुखं ।। ३३७॥१
एकपदा परि एकैकेनाक्षरेख वर्धमानाः । संख्यातसहस्रपदे, बुद्धे संघातनाम श्रुतम् ॥ ३३७ ॥
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टीका एक पद के ऊपर एक एक अक्षर बघते बघते एक पद का अक्षर प्रमाण पदसमास के भेद भएं, पदज्ञान गुणा भया । बहुरि इस एक एक अक्षर ae aed पदका अक्षर प्रमाण पदसमास के भेद भएं, पदज्ञान तिगुणा भया । जैसे ही एक एक अक्षर की बघवारी लीए पद का प्रक्षर प्रमाण पदसमास ज्ञान के भेद गुणा पंचगुणा आदि संख्यात हजार करि गुण्या हूंवा पद का प्रमाण में
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एक अक्षर घटाइयें तहां पर्यंत पदसमास के भेद जानने । पदसमास ज्ञान का उत्कृष्ट भेद विषै सोई एक अक्षर मिलायें, संघात नामा श्रुतज्ञान हो है । सो च्यारि गति fa एक गति के स्वरूप का निरूपणहारे जो मध्यमपद, तिनिका समूहरूप संघात ज्ञान के सुने तं जो श्रर्यज्ञान भया, ताक संघात श्रुतज्ञान कहिये ।
में प्रतिपत्तिक श्रुतज्ञान के स्वरूप को कहे हैं
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एक्कदर गदि णिवय-संघादसुदादु उवरि युवखं वा । व संखज्जे, संघादे उडिदम्हि पडिवत्ती ॥३३८॥
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१ षट्डागमधला पुस्तक ६, पृष्ट २३ को टोका |
२. बध, प्रति में 'यह' शब्द मिलता है ।
एकतर गतिनिरूपक संघातश्रुतापरि पूर्व वा । वर्षो संख्येये, संघाते वृद्धे प्रतिपत्तिः ।।३३८ ॥
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संघात नामा श्रुतज्ञान, ताके लीयें, एक एक पद की वृद्धि
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टीका एक गति का निरूपण करणहारा जो ऊपर पूर्वोक्त प्रकार करि एक एक प्रक्षर की बधवारी करि संख्यात हजार पद का समूहरूप संघात श्रुत होइ संख्यात हजार संघात श्रुत होइ । तिहि में स्यों एक अक्षर समास के भेद जानना । बहुरि अंत का संघात समास श्रुतज्ञान का उत्कृष्ट भेद विषै वह अक्षर मिलाइये, तब प्रतिपत्तिक नामा श्रुतज्ञान हो है । सो नरकादि च्यारि गति
बहुरि इस ही अनुक्रम तें घटाइये तहां पर्यंत संघात