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होम्मटमार जीवकाम गाथा २६३
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तज्जोगो सामण्णं, कानो संखाहदो तिजोगमिदं । सब्वसमासविभजिदं, सगसगगुणसंगुणे दु सगरासी ॥२६३॥
तद्योगः सामान्यं, कायः संख्याहतः त्रियोगिमितम् । सर्वसमासविभक्त, स्वकस्वकगुरणसंगुरणे तु स्वकराशिः॥२६३॥
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टीका - बहुरि जो चार्यों वचन योगनि का काल कह्या, ताका जोड दीएं, जो परिमाए होइ, सो सामान्य वचन बोग का काल है ताकी संदृष्टि तीन से चालीस गुरणा पिच्यासी ( ३४०४८५ ) अंतर्मुहूर्त । यात संख्यात गुरणा काल' काययोग का जानना । ताकी संदृष्टि तेरह से साठि गुणा पिच्यासी (१३६० ४-५) अंतर्मुहूर्त । असे इनि तीनों योगनि के काल का जोड दीएं, सतरह से एक गुणा पिच्यासी ( १७०१४८५ ) अंतर्मुहूर्त प्रमाण भया । ताके जेते समय होंहि, तिस प्रमाण करि त्रियोग कहिए । पूर्व जो त्रियोगी जीवनि का परिमाण कहा था, ताकौं भाग दीजिए 'जो एक भाग का परिमाण प्राव, ताकौं सत्यमनोयोग के काल के जेते समय, तिन'करि गुण, जो परिमारण प्रादै, तितने सत्य मनोयोगी जीव जानने । बहरि ताही कौं 'असत्य मनोयोग काल के जेते समय, तिन करि गुण, जो परिमाण आवै, तितने असत्य मनोयोगी जीव जानने । असें ही काययोग पर्यंत सर्व का परिमाण जानना । इहां सर्वत्र वैराशिक करना । तहां जो सर्व योगनि का काल विर्षे पूर्वोक्त त्रियोगी सर्व 'जीव पाइए, तो विवक्षित योग के काल विर्ष केते जीव पाइए ? असे तीनो योगनि का जोड दिएं जो काल भया, सो प्रमाण राशि, त्रियोगी जीवनि का परिमाण फल राशि, अर जिस योग की विवक्षा होइ तिसका काल इच्छा राशि, जैसे करि के फलराशि कौं इच्छाराशि करि गुरिण प्रमाणराशि का भाग दीएं, जो-जो परिमाण आवें, तितने-तितने जीव विवक्षित योग के धारक जानने ।
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बहुरि द्वियोगी जीवनि विर्षे वचनयोग का काल अंतर्मुहुर्त मात्र, ताकी संदटि. एक अंतर्मुहूर्त, याते संख्यातमुणा काययोग का काल, ताकी संदृष्टि च्यारि अंतमुंहूर्त, इनि दोऊनि के काल को जोड, जो प्रमाण होइ, ताका भाग द्वियोमी जीव राशि की. दीएं, जो एक भाग का परिमाण होइ, ताकौं अपना-अपना काल करि गुरणे, अपना-अपना राशि हो है। तहां किछू घाटि सराशि के प्रमाण की संदृष्टि अपेक्षा पांच करि भाग देइ, एक करि गुरणे, द्वियोगीनि विर्षे वचन योगीनि का
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