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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ २१७ रूऊरणवरे प्रवरस्सुवरि संवढिदे तदुक्कस्स। सम्हि पदेसे उड्ढे, पढ़मा संखेज्जगुणवंड्ढि ॥१०७॥ रूपोनादरे प्रवरस्योपरि संवधिसे तऽत्कृष्टं ।
तस्मिन् प्रदेशे वृद्धे प्रथमा संख्यातगुणवृद्धिः ॥१०७॥ टोका - एक धाटि जघन्य अवगाहना का प्रदेश प्रमाण जघन्य अवगाहना के ऊपरि बधत संते प्रवक्तव्य भाग वृद्धि का अन्त उत्कृष्ट अवगाहना स्थान हो है । जाते जघन्य संख्यात का प्रमाण दोय है, सो दूणा भए संख्यात गुण वृद्धि का आदि स्थान होइ । तातै एक घाटि भए, याका अंतस्थान हो है । इहां प्रवक्तव्य भाग वृद्धि के स्थान केते हैं ? सो कहिए है - 'पाबी अंते सुद्धे' इत्यादि सूत्र करि याके आदि कौं अन्त विर्षे घटाइ, अवशेष कौं वृद्धि एक का भाग देइ एक जोडे जो प्रमाण होइ, तितने प्रवक्तव्य भाग वृद्धि के स्थान हो है । बहुरि तिस प्रवक्तव्य भाग वृद्धि का अंत स्थान विषं एक प्रदेश जुई, संख्यात गुण वृद्धि का प्रथम अवगाहन स्थान हो है । ताक प्रागै एक-एक प्रदेश की वृद्धि करि संख्यात गुण वृद्धि के असंख्यात अवगाहना स्थान कौं प्राप्त होइ, एक स्थान विर्षे कह्या, सो कहै हैं -
प्रवरे वरसंखगुणे, तच्चरिमो तसि रूवसंजुत्ते। उग्गाहणह्मि पढमा, होदि अवतन्वगुणवड्ढी ॥१०८॥ प्रवरे वरसंख्य गुणे, तच्चरमः तस्मिन् रूपसंयुक्ते ।
अवगाहने प्रथमा, भवति प्रवक्तव्यगुणवृद्धिः ॥१०॥ टोका - जघन्य अवगाहना कौं उत्कृष्ट संख्यात करि गुणे जितने होइ, तितने प्रदेश जहाँ पाइए, सो संख्यात गुण वृद्धि का अंत अवगाहना स्थान है । बहुरि ए संख्यात गुण वृद्धि के स्थान केते हैं ? सो कहिए है - पूर्ववत् 'प्रादो अंते सुद्धे वट्टिहिदे रूवसंजुदे ठाणे' इत्यादि सूत्र करि याका आदि कौं अन्त विर्षे घटाइ, वृद्धि एक का भाग देई, एक जोडें, जितने पावें तितने हैं। बहुरि प्राग संख्यात गुण बुद्धि का अन्त' अवगाहना स्थान विर्षे एक प्रदेश जोडे, प्रवक्तव्य गुण वृद्धि का प्रथम अवगाहन स्थान हो है। यात प्रामें एक-एक प्रदेश की वृद्धि करि अवक्तव्य गुण वृद्धि के स्थान असंख्यात प्राप्त करि एक स्थान विर्षे कह्या, सो कहै हैं -