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। पोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १०६ सं, ताकौं इस तीन से एक प्रमाण भागहार का भाग दीए जो पाइए, तितने का भागहार संभव है । तहां 'हारस्य हारो गुणोंशराशेः' इस करण सूत्र करि भागहार का भागहार है, सो भाज्य राशि का गुणकार होइ; असे भिन्न मणित का आश्रय करि अडतालीस से की तीन से एक करि ताको अडतालीस से का भाग दीए इतने प्रमाण तिस प्रवक्तव्य भामवृद्धि का प्रथम अवगाहन भेद के वृद्धि का प्रमाण हो है। सो अपवर्तन कीए तीन से एक ही प्रावे है । सो यह संख्यात-असंख्यातरूप भागहाररूप न कह्या जाय; तातै प्रवक्तव्य भाग वृद्धिरूप कह्या है ।
___ भावार्थ - इहां असा जो भिन्न परिणत का आश्रय करि इहां भागहार का प्रमाण असा प्राव है । बहुरि जैसे यह अंकसंदृष्टि करि कथन कीया, असे ही अर्थसंदृष्टि करि कथन जोडना । इस ही अनुक्रम करि प्रवक्तव्य भाग वृद्धि के अन्तस्थान पर्यन्त स्थान ल्यायने । बहुरि तिस प्रवक्तव्य भाग वृद्धि का अन्त अवगाहना स्थान विर्षे एक प्रदेश जु. संख्यात भाग वृद्धि का प्रथम अवगाहन स्थान हो है । ताके मागे एक-एक प्रदेश की वृद्धि का अनुक्रम करि अवगाहन स्थान असंख्यात प्राप्त हो है।
अवरद्ध अवरुवार, उड्ढे तव्वढिपरिसमत्तीहु । रूवे तववरि उढ़डे, होरि अवतन्वयढमपदं ॥१०६॥
अबरार्धे अवरोपरिवृद्ध तद्धिपरिसमाप्तिहि ।
रूपे तदुपरिबद्धे, भवति अवक्तव्यप्रथमपदम् ॥१०६॥ टीका - जघन्य अवगाहना का प्राधा प्रमाणरूप प्रदेश जघन्य अवमाहना के ऊपरि बघते संते संख्यात भाग वृद्धि का अन्तस्थान हो है । जातें जघन्य संख्यात का प्रमाण दोय है, ताका भाग दीए राशि का आधा प्रमाण हो है। बहुरि ए संख्यात भाग वृद्धि के स्थान केते हैं ! सो कहिए है - प्रादी अंत सुद्धे बट्टिहिवे रूवसंजुदे ठाणे इस सूत्र करि संख्यात भाग वृद्धि का आदिस्थान का प्रदेश प्रमाण की अन्तस्थान का प्रदेश प्रमाण वि घटाइ अवशेष की बुद्धि का प्रमाण एक का भाम दीए भी तितने ही रहैं । तहां एक जो. जो प्रमाण होइ, तितने संख्यात भाग वृद्धि के स्थान हैं । बहुरि संख्यात भाग वृद्धि का अन्त अवगाहना स्थान विर्षे एक प्रदेश जुडे, अवक्तव्य भागवृद्धि का प्रथम अवगाहन स्थान उपज है । बहुरि ताके आगे एक-एक प्रदेश बघता अनुक्रम करि प्रवक्तव्य भाग वृद्धि के स्थान असंख्यात उलंघि एक जायगा कह्या, सो कहै हैं ।
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