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[ महार जोषका गापा kE टीका - बहुरि तिनि तीनि पंक्तिनि के आगे ऊपर पंक्ति विषं दशबा कोठा करना तीहि विर्षे अप्रतिष्ठित प्रत्येक, द्वींद्रिय,. श्रींद्रिय, चतुरिद्रिय, पंचेंद्रिय नाम धारक पांच बादर लिखे हो हैं। बहुरि ताके आगें ग्यारहवां कोठा विर्षे त्रींद्रिय, चौइंद्रिय, बेंद्रिय, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती, पचेंद्रिय नाम धारक पांच बादर लिखे हो हैं । बहरि ताके प्राग बारहवां कोठा विर्षे त्रींद्रिय, चतुरिद्रिय, द्वींद्रिय, अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती, पंचेंद्रिय नाम धारक पांच बादर लिखे हो हैं । जैसें ए चौसाठि जीवसमासनि की अवगाहना के भेद हैं। तिनि विर्षे ऊपरि की पंक्तिनि के आठ कोठानि विर्षे प्राप्त असे जे बियालीस जीवसमास, तिनकी अवगाहना के स्थान, ते गुणितक्रम हैं । अनुक्रम तें पूर्व स्थान कौं यथासंभव गुणकार करि मुणे उत्तरस्थान हो हैं। बहुरि तातै इनि नीचे की दोय पंक्तिनि विर्षे प्राप्त भए बाईस स्थान, ते 'सेढिगया अहिया तत्थेकपडिभागो' इस वचन तें अधिक रूप है। तहां एक प्रतिभाग का अधिकपना जानना । पूर्वस्थान कौं संभवता भागहार का भाग देइ एक भाग कौं पूर्वस्थान विर्षे अधिक कीए उत्तरस्थान हो है; असा सूचन कीया है ।
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अवरमपुण्णं पढम, सोलं पुरण पढमबिदियतदियोली। पुण्णिवरपुण्णियावं, जहण्णमुक्कस्समुक्कस्सं ॥६६॥
अवरमपूर्ण प्रथसे, षोडश पुनः प्रथमद्वितीयतृतीयावलिः ।
पूर्णेतरपूर्णानां, जधन्यमुत्कृष्टमुत्कृष्टं १९९॥ टीका -- पहले तीन कोठेनि विर्षे प्राप्त जे सोलह जीवसमास, तिनिकी अपर्याप्त विर्षे जघन्य अवगाहना जाननी । बहुरि आगे ऊपरि तें पहली, दूसरी, तीसरी पंक्तिनि विर्षे एक-एक पंक्ति विर्षे दोय-दोय कोठे कीए, ते ऋम तें पर्याप्त, अपर्याप्त, पर्याप्तरूप तीन प्रकार जीव की जघन्य, उत्कृष्ट अर उत्कृष्ट अवगाहना है । याका अर्थ यह -- जो ऊपरि ते प्रथम पंक्ति के दोय कोठानि विर्षे पांच सूक्ष्म, छह बादर इनि - ग्यारह पर्याप्त जीवसमासनि की जघन्य अवगाहना के स्थान हैं । तैसे ही नीचें दूसरी पंक्ति विषं प्राप्त तिनि ग्यारह अपर्याप्त जीवसमासनि की उत्कृष्ट अवगाहना के स्थान हैं । तैसें ही तीसरी पंक्ति विष प्राप्त तिनि ग्यारह पर्याप्त जीव समासंनि की उत्कृष्ट अवगाहना के स्थान हैं ।
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