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मम्मानन्द्रिका भाघाटका
टीका - इहां नाम का एक देश, सो संपूर्ण नाम विर्षे वत है । इस लघुकरण न्याय कौं प्राश्रय करि गाथा विर्षे कह्या हुवा णिवा इत्यादि आदि अक्षरनि करि निगोद वायुकायिक आदि जीवनि का ग्रहण करना । सो इहां अवगाहना के भेद जानने के अथि एक यंत्र करना। .
तहां सूक्ष्म निगोदिया, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म तेजःकायिक, सूक्ष्म अप्. कायिक, सूक्ष्म पृथ्वीकायिक नाम धारक पांच सूक्ष्म तिस यंत्र के प्रथम कोठे विषं लिखे हो हैं।
बहुरि ताकी बरोबरि प्राग बादर- वायु, तेज, जल, पृथ्वी, निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक नाम धारक ये छह बादर पूर्ववत् अनुक्रम करि दूसरा कोठा विर्षे लिखे हो हैं। पहिले जिनके नाम लीए थे, तिन ही के फेरी लीए, इस प्रयोजन की समर्थता ते प्रथम कोठा विर्षे सूक्ष्म कहे थे; इहां दूसरा कोठा विर्ष बादर ही हैं, असा जानना।
बहुरि ताके आगे अप्रतिष्ठित प्रत्येक, हींद्रिय, श्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, पंचेंद्रिय नाम धारक ए पांच बादर तीसरा कोठा विर्षे लिखे हो हैं । इनि सोलहौं विर्षे आदि के सूक्ष्म निगोदादिक ग्यारह, तिनि आमै तीन पंक्ति करनी । तहां एक-एक पंक्ति विर्षे दोय-दोय कोठे जानने । कसै ? सो कहिए है - पूर्वे तीसरा कोठा कहा था, ताके प्रागै दोय कोठे करने । तिनि विषं जैसे पहला, दूसरा कोठा विर्षे पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे थे, तैसे इहां भी लिखे हो हैं । बहुरि तिनि दोऊ कोठानि के नीचे पंक्ति विषं दोय कोठे और करने । तहां भी तैसे ही पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे हो हैं। बहुरि तिनिके नीचे पंक्ति विषं दोय कोठे और करने, तहां भी तैसे ही पांच सूक्ष्म, छह बादर लिखे हो हैं । असे सूक्ष्म निगोदादि ग्यारह स्थानकनि का दोय-दोय कोठानि करि संयुक्त तीन पंक्ति भई । या प्रकार ऊपरि की पंक्ति विर्षे पांच कोठे, ताते नीचली पंक्ति विष दोय कोठे, तातै नीचली पंक्ति विर्षे दोय कोठे मिलि नव कोठे भए ।
अपदिविपत्तेयं, बितिचपतिचबि-अपदिट्ठि सयलं । तिचवि-अपविदिं च य, सयलं बादालगुरिषदकमा ६
अप्रतिष्ठितप्रत्येक द्वित्रिपत्रिचद्वचप्रतिष्ठितं सकलम् । विधवप्रतिष्ठितं च च सकलं वाचत्वारिंशद्गुणितकमाः ।।९८॥