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[ भोम्मटसार श्रीरकाण्ड गाथा ६६-६७ (१०००) अर पांच सै (५००) पर अढाई से (२५०) योजन प्रमाण, इनिकों परस्पर गुणें साढे बारा कोडि (१२५००००००) योजन प्रमाण धनफल हो है। असे कहे जो योजन रूप घनफल, तिनके प्रदेशनि का प्रमाण कीए एकेंद्रिय के च्यारि बार संख्यातगुणा घनांगुल प्रमाण, द्वींद्रिय के तीन बार संख्यातगुणा घमांगुल प्रमाण, वींद्रिय के एक बार संख्यातगुणा धनांगुल प्रमाण, चतुरिद्रिय के दोय बार संख्यातगुणा घनांगुल प्रमाण, पंचेंद्रिय के पांच बार संख्यातगुणा धनांगुल प्रमाण प्रदेश उत्कृष्ट अवगाहना विर्षे हो है ।।
आग पर्याप्त ह्रींद्रियादिक जीवनि का जघन्य अवगाहना का प्रमाण भर ताका स्वामी का निर्देश कौं कहै हैं -
बितिचपपुग्णजहणं, अणुधरीकुथुकारणमच्छीसु । सिच्छयमच्छे विदंगलसंखं संखगुरिगदकमा ॥६६॥ द्वित्रियपपूर्णजधन्यमkधरीकुथुकारामक्षिकासु ।
सिक्थकमत्स्ये बांगुलसंख्य संख्यगणितकमाः ॥१६॥ टीका - पर्याप्त द्वींद्रिय विर्षे मनुंधरी, त्रींद्रियनि विर्षे कुंथ, चतुरिद्रियनि विर्षे कारणमक्षिका, पंचेंद्रियनि विर्षे तंदुलमच्छ इनि जीवनि विर्षे जपच्य अवगाहना विशेष धरै जो शरीर, ताकरि रोक्या हुवा क्षेत्र (प्रदेशनि) का प्रमाण धनांगुल का संख्यातदां भाग तें लगाइ, संख्यातगुणा अनुक्रम करि जानना । तहां द्वींद्रिय विष च्यारि बार, त्रींद्रिय विर्षे तीन बार, चतुरिद्रिय विर्षे दोय बार, पंचेंद्रिय विर्षे एक बार, संख्यात का भाग जाकौं दीजिए औसा घनांगुल मात्र पर्याप्तनि की जघन्य अवगाहना के प्रदेशनि का प्रमाण जानना । इनिका अब चौडाई, लम्बाई, ऊंचाई का उपदेश इहां नाहीं है । धनफल कीए जो प्रदेशनि का प्रमाण भया, सो इहां
कह्या है।
आगै सर्व ते जघन्य अवगाहना कौं आदि देकरि उत्कृष्ट अवगाहना पर्यंत शरीर को अवगाहना के भेद, तिनिका स्वामी वा अल्पबहुत्व वा क्रम तें गुणकार, तिनिकौं गाथा पंच करि इहां दिखावे हैं -
सुहमरिणवातेप्राभू वालेनापुरिणपविदिं इदरं । बितिचपमाविल्लाणं, एयाराणं लिसेढीय ॥६॥ सूक्ष्मनिवातेयाभू, वातेप्रनिप्रतिष्ठितमितरत् । द्वित्रिचपमाद्यानामेकादशानां त्रिश्रेपथः ।।९७॥
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