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[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ७७.५६ स्थान चौदह हो हैं । बहुरि तैसें ही स्थावरकाय के दश, बहुरि सकाय के बेंद्री, तेंद्री, चौंद्री, असंज्ञी पंचेंद्री, संशी पंचेंद्री ए पांच मिलि करि जीवसमास के स्थान पंद्रह हो हैं । बहुरि तैसें ही पृथिवी, अप्, तेज, वायु ए च्यारि अर साधारण वनस्पति के नित्यनिगोद, इतरनिगोद ए दोय भेद मिलि छह भए । ते ए जुदे-जुदे बादर सूक्ष्म भेद लीए हैं। ताके बारह अर एक प्रत्येक वनस्पती, असे स्थावर काय तेरह अर सकाय विकलेंद्रिय, प्रसंशी पंचेंद्रिय, संज्ञी पंचेंद्रिय ए तीनि मिलि जीवसमास के स्थान सोलह हो हैं । बहरि तसे ही स्थावरकाय के तेरह अर असकाय के बेंद्री, तेंद्री, चौंद्री, पंचेंद्री ए च्यारि भेद मिलि करि जीवसमास के स्थान सतरह हो हैं । बहुरि स्थावरकाय के तेरह अर असकाय के बेंद्री, तेंद्री, चौंत्री, असंज्ञी पंचेंद्री, संज्ञी पंचेंद्री ए पांच मिलि जीवसमास के स्थान अठारह हो हैं ।
सगजुगलह्मितसस्स य, पणभंगजुदेसु होति उणवीसा। एयादुणवीसो त्ति य, इगिवितिगुणिवे हवे ठारणा ॥७७॥ सप्तयुगले सस्य च, पंचभंगयुतेषु भवंति एकोनविंशतिः। . एकावेकोनविंशतिरिति च, एकद्वित्रिगुरिणते भवेयुः स्थानानि ॥७७॥
टीका - तैसे ही पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, नित्यनिगोद, इतरनिगोद ए छहों बादर-सूक्ष्मरूप, ताके बारह अर प्रत्येक वनस्पति के सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित ए दोय पर त्रस के बेंद्री, तेंद्री, चौंद्री असंझी पंचेंद्रिय, संजी पंचेंद्रिय ए पांच मिलि जीवसमास के स्थान उगरणीस हो हैं । असे कहे जे ए सामान्य जीवरूप एक स्थान कौं आदि देकरि उगएपीस भेदरूप स्थान पर्यन्त स्थान, तिनिकौं एक, दोय तीन करि गुण, अनुक्रम ते अंत विर्षे उगणीस भेदस्थान, अड़तीस भेदस्थान, सत्तावन भेदस्थान हो हैं।
सामग्रमेण तिपंती, पढमा बिदिया अपुण्णगे इवरे । पज्जत्ते लद्धिअपज्जले पढमा हवे पंती ॥७॥ सामान्येन त्रिपंक्तयः, प्रथमा द्वितीया अपूर्णके इसरस्मिन् ।
पर्याप्ते लब्ध्यपर्याप्त प्रथमा भवेत् पंक्तिः ॥७८॥ टोका - पूर्व कहे जे एक कौं आदि देकरि एक-एक बधते उगणीस भेदरूप स्थान, तिनिकी तीन पंक्ति नीचे-नीचे करनी । तिनि विर्षे प्रथम पंक्ति तौ पर्याप्तादिक
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