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सम्यधात्रयधिका अगाटोका 1
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था सूक्ष्मकृष्टि को प्राप्तपने का स्वभाव को गाथा दोय करि प्ररूप हैं - कुण्यापुण्वफड्ढ़य, बादरहमगय किट्टिश्रणुभागा । atusमाणं गुणेrवरा वरं च हेटस्स ॥५६॥
पूर्वा पूर्वस्पर्धकवाद र सूक्ष्मगतकृष्टचनुभागाः । हीनक्रमा प्रनंतगुणेन श्रवरात्तु वरं चाधस्तनस्य ॥५९॥
टीका - पूर्वे श्रनिवृत्तिकरण गुणस्थान विषै वा संसार अवस्था विष जे सभवें ऐसे कर्म की शक्ति समूहरूप पूर्वस्पर्धक, बहुरि अनिवृत्तिकरण परिणामनि करि hte तिनके अनंतवें भाग प्रमाण अपूर्वस्पर्धक, बहुरि तिनहि करि करी जे बादरकृष्टि, बहुरि तिनही करि करी जे कर्म शक्ति का सूक्ष्म खंडरूप सूक्ष्मकृष्टि, इनिका क्रम तैं अनुभाग अपने उत्कृष्ट तें अपना जधग्य, अर ऊपर के जघन्य तैं नीचला उत्कृष्ट ऐसा अनंतगुणा घाटि क्रम लीए है ।
भावार्थ - पूर्व स्पर्धकनि का उत्कृष्ट अनुभाग, सो प्रविभागप्रतिच्छेद पेक्षा जो प्रमाण धरै है, ताके अनंतवें भाग पूर्व स्पर्धकनि का जघन्य अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवें भाग प्रपूर्वस्पर्धकनि का उत्कृष्ट अनुभाग हैं । बहुरि ताके अनंत भाग पूर्वस्पर्धकनि का जघन्य श्रनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवें भाग बादरकृष्टि का उत्कृष्ट अनुभाग है । बहुरि ताके अनंत भाग बादरकृष्ट का अन्य अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवें भाग सूक्ष्मकृष्टि का उत्कृष्ट अनुभाग है । बहुरि ताके अनंतवें भाग सूक्ष्मकृष्टि का जघन्य अनुभाग है; ऐसा अनुक्रम जानना |
बहुरि इन पूर्वस्पर्धकादिकनि का स्वरूप आगे लब्धिसार क्षपणासार का कथन लिखेंगे, तहां नीकै जानना । तथापि इनिका स्वरूप जानने के प्रथि इहां भी fife वर्णन करिये है ।
कर्म प्रकृतिरूप परिणए जे परमाणु तिनिविषे अपने फल देने की जो शक्ति, ता अनुभाग कहिये । तिस अनुभाग का ऐसा कोई केवलज्ञानगम्य अंश, जाका दूसरा भाग न होइ; सो इहाँ प्रविभागप्रतिच्छेद जानना ।
बहुरि एक परमाणु विषै जेते यविभागप्रतिच्छेद पाइए, तिनके समूह का नाम वर्ग है ।
१ षट्खंडागम - घवला पुस्तक १, पृष्ठ १८६, गाथा १२१
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