________________
M
[ गोम्भष्टसार जीवकाराष्ट्र गाथा ५६
१६२ ]
बहुरि जिन परमाणुनि विर्षे परस्पर समान मणना लीए अविभागप्रतिच्छेद पाइए, तिनिके समूह का नाम वर्गणा है।
तहां अन्य परमाणुन हैं जापिय और प्रतिमा प्रतिन पाइए, ताका नाम जघन्य वर्ग है ।
बहुरि तिस परमाणु के समान जिन परमाणुनि विर्षे अविभागप्रतिच्छेद पाइए, तिनके समूह का नाम जघन्य वर्गणा है । बहुरि जघन्य वर्ग से एक अविभागप्रतिच्छेद अधिक जिनिविर्षे पाइए असी परमाणुनि का समूह; सो द्वितीय वर्गरणा है। असे जहां ताई एक-एक अविभागप्रतिच्छेद बधने का क्रम लीए जेती वर्गणा होइ, तितनी वर्गणा के समूह का नाम जघन्य स्पर्धक है । बहुरि यातें ऊपरि जघन्य वर्गणा के वर्गनि विर्षे जेते अविभागप्रतिच्छेद थे, तिनसे दूणे जिस वर्गणा के. वर्गनि विर्षे अविभागप्रतिच्छेद होंहि, तहांते द्वितीय स्पर्धक का प्रारंभ भया। तहां भी पूर्वोक्त प्रकार एक-एक अविभागप्रतिच्छेद बधने का क्रमयुक्त वर्गनि के समूहरूप जेती वर्गणा होइ, तिनके समूह का नाम द्वितीय स्पर्धक है । बहुरि प्रथम स्पर्धक की प्रथम वर्गणा के वर्गनि विर्षे जेते अविभागप्रतिच्छेद थे, तिनतं तिगुणे जिस. वर्गरणा के वर्गनि विर्षे अविभागप्रतिच्छेद पाइए, तहातै तीसरे स्पर्धक का प्रारंभ भया, तहां भी पूर्वोक्त क्रम जानना।
अर्थ इहां यहु - जो यावत वर्गणा के वर्गनि विर्षे क्रम ते एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद बधै, तावत् सोई स्पर्धक कहिए । बहुरि जहां युगपत् अनेक अविभागप्रतिच्छेद बधे, तहांत नवीन अन्य स्पर्धक का प्रारंभ कहिए । सो चतुर्थादि स्पर्धकनि की अादि वर्गणा का वर्ग विषं अविभागप्रतिच्छेद प्रथम स्पर्धक की आदि वर्गणा के वर्गनि विर्षे जेते थे, तिनत चौगुणा, पंचगुणा आदि क्रम लीए. जानने । बहुरि अपनीअपनी द्वितीयादि वर्गणा के वर्ग विर्षे अपनी-अपनी प्रथम वर्गणा के वर्ग ते एक-एक अविभागप्रतिच्छेद बधता अनुक्रम तें जानना । असे स्पर्धकनि के समूह का नाम प्रथम गुणहानि है । इस प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा विर्षे जेता परमाणुरूप वर्ग पाइए है, तिनितें एक-एक चय प्रमाण घटते द्वितीयादि वर्गणानि विर्षे वर्ग जानने । असे क्रम तैं जहां प्रथम गुणहानि की वर्गणा के वर्गनि तँ प्राधा जिस वर्गणा विर्षे वर्ग होइ, तहांतें दूसरी गुणहानि का प्रारंभ भया। तहां द्रव्य, चय मादि का प्रमाण प्राधा-प्राधा जानना। इस क्रम ते जेती गुणहानि सर्व कर्म परमाणुनि विष पाइए, तिनिके समूह का नाम नानागुणहानि है. ।
-
-
-
-
-