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अणेगंतकंडयं
सामण्णम्मि विसेसो विसेसपक्खे य वयणविणिवेसो'। दव्वपरिणाममण्ण' दाएइ तयं च णियमेइ ॥१॥ सामान्ये विशेषो विशेष-पक्षे च वचनविनिवेशः ।
द्रव्यपरिणाममन्यं दर्शयति त्रयं च नियमयति ॥1॥ शब्दार्थ-सामण्णम्मि-सामान्य में; बिसेसो-विशेष (का) विसेसपक्ने-विशेष पक्ष में य-और; ययणविणिचेसो-(सामान्य का) वचन-विनिवेश (होता है, वह दच्यपरिणाममण्णं-द्रव्य (द्रव्य का) परिणाम (और) अन्य (स्थिति) (को); दाएइ-दिखलाता (है); तयं-तीनों (उत्पाद, व्यय और धौव्य को); य-और; णियमेड़-नियत करता है)। सामान्य और विशेष में भेद नहीं : भावार्थ-सामान्य में विशेष का और विशेष में सामान्य का जो कथन किया जाता है, वह द्रव्य, गुण और उसकी पर्यावों को भिन्न-भिन्न रूप में बतलाता हुआ तीनों को एक नियत करता है। भाव यह है कि प्रमाण विषयक पदार्थ 'सामान्यविशेषात्मक' है। पदार्थ सामान्य और विशेष इन दो धर्मों से युक्त है। सामान्य विशेष को छोड़ कर और विशेष सामान्य को छोड़ कर अन्यत्र स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध नहीं होता। किन्तु वक्ता की विवक्षा से जो सामान्य होता है, वही विशेष बन जाता है। सामान्य विशेष के बिना और सामान्य के बिना विशेष किसी भी पदार्थ में नहीं रहते।
एगतणिव्विसेस एगंतबिसेसियं च क्यमाणो । दव्वस्स पज्जवे पज्जवा हि दवियं णियत्तेइ ॥2॥
I. ब" वयणावेन्नासो। 2. ब" परिणामपण। 3. वय । सवा 1. अ एवंत। 5. ब" य।