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सम्मइसुत्तं
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एकान्तनिर्विशेषमेकान्तविशेषितं च बदति। द्रव्यस्य पर्यवे पर्ययः किनिवन्ति ।
शब्दार्थ-एगतणिव्विसेसं-एकान्त सामान्य (और); एगंतचिसेसिवं-एकान्त विशेष (का); च-और वयमाणो-कथन करने वाला; दव्वस्स-द्रव्य की; परूजवे-पर्यायों को; (और) पज्जवा-पर्यायों (से); हि-निश्चय (से); दवियं-द्रव्य को; णियत्तेइ-निष्पन्न करता (है)।
एकान्त : द्रव्य पर्याय से भिन्न : मावार्थ-एकान्ती का यह कथन है कि सामान्य विशेष से रहित है और विशेष सामान्य से रहित है। अतः वह द्रव्य को पर्यायों से और पर्यायों को द्रव्य से अलग मानकर कहता है। किन्तु द्रव्य ऐसा भिन्न-भिन्न नहीं है। जहाँ द्रव्य है, वहाँ पर्याय है और जहाँ पर्याय है वहाँ द्रव्य है। वास्तव में दोनों एक-दूसरे से अलग नहीं हैं।
पच्चुप्पण्णं भावं विगयभविस्सेहिं जं समण्णेई'। एवं पडुच्चवयणं दव्वंतरणिस्सियं जं च ॥31॥ प्रत्युत्पन्नं भावं विगतभविष्यद्भ्यां यत्समन्धेति। एतत्प्रतीत्यवचनं द्रव्यान्तरनिस्सृतं यच्च ॥३॥
शब्दार्थ-जं-जो (वचन); पच्चुप्पण्ण-वर्तमान; भावं -पर्याय (का); विगयमविस्सेहि-अतीत (तथा) भावी (पर्याय के साथ) से; समण्णेइ-समन्वय करता (है); जं-जो; च--और दव्वंतरणिस्सियं-भिन्न द्रव्यों (से) सम्बन्धित (है); जं-जो; च-और; एयं-पह; पडुच्चवयणं-प्रतीत्यवचन (वास्तविक ज्ञानपूर्वक उच्चरित आप्त-वचन) है।
सामान्य का समन्वयकारी प्रतीत्यवचन : भावार्थ-जो (वचन) वर्तमान पर्याय का भूत तथा भविष्यत् पर्याय के साथ समन्वय करता है, वह ऊर्ध्वता सामान्य रूप वचन परमार्थ से सत्य है। यही सर्वज्ञवाणी है। इसके अतिरिक्त वाणी श्रद्धान योग्य नहीं है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न द्रव्यों में अवस्थित सामान्य अर्थात् तिर्यक् सामान्य का समन्वय करने वाले वचन प्रतीत्यवचन हैं।
1. ब" समाह। 2. सणिम्मियं जम्म।