________________
सम्मइसुसं
सद्भावे आदिष्टो देशो देशश्चोभयथा यस्य । तवस्त्यवक्तव्यं च भवति द्रव्यं विकल्पवशात् ||३६||
शब्दार्थ - जस्स- जिसका देखो-देश (एक भाग): सब्भावे - सद्भाव ( अस्तिरूप) से: य - और देसो- देश (एक भाग); उभयहा - उभय (रूप) से आइट्ठो - विवक्षित (हो): तं - वह दवियं -- द्रव्यः वियप्पवसा-- विकल्प (भेद के) वंश (कारण); अत्थि अबत्तव्यं अस्ति वक्तव्य (होता) है।
(5) अस्ति - अवक्तव्य :
भावार्थ - जिस समय वस्तु के सत् रूप का कथन किया जाता है, उस समय वस्तुगत रूप का कथन नहीं हो सकता और असत् रूप के कथन के समय सत् रूप का प्रतिपादन नहीं हो सकता। इसलिए जिस द्रव्य का एक भाग अस्तिरूप से और दूसरा भाग उभयरूप से कहा जाता है, वह विकल्प के कारण 'अस्ति- अवक्तव्य' कहा जाता है। इस प्रकार यह पाँचवा भंग प्रकट किया गया है।
आइट्ठो असमावे देसो देसो य उभयहा जस्स । तं णत्थि अवत्तव्वं च होइ दवियं वियप्पयसा ॥39॥
आदिष्टोऽभावे देशो देशश्चोभयथा यस्य । तन्नास्त्यवक्तव्यं च भवति द्रव्यं विकल्पवशात् ||39 ||
73
शब्दार्थ - जस्स- जिसका देखो-देश (एक भाग): असम्भावे -असत् भाव में; आइट्ठो - कहा जाता (है); य-और देसो- देश (एक भाग); उभयहा - उभयरूप ( दोनों तरह) से; तं - वह; दवियं - द्रव्य वियप्पयसा-विकल्पवश; णत्थि अवत्तव्यं नास्ति - अवक्तव्य: होइ - होता ( कहा जाता है ।
-
( 6 ) नास्ति अवक्तव्य :
भावार्थ - यह छठा भंग है। इस भंग में पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से द्रव्य असतुरूप है और उभयनयों की युगपत् प्रधानता से वह अवक्तव्य भी है। जब असत् गंग (अभाव) अवक्तव्य के साथ कहा जाता है, तब द्रव्य का एक भाग नास्तिरूप से और एक भाग उभय रूप से विवक्षित होता है। इस तरह विकल्पभेद से द्रव्य 'कथचित् नास्ति' रूप भी है और 'कथंचित् अवक्तव्य' भी है।
सब्भावासम्भावे देसो देसो य उभयहा जस्स ।
तं अत्यि णत्थि अवत्तब्वयं च दवियं वियप्पवसा । 40 | 1
1. स्यवत्तव्वयं ।