SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Neौल घासिया नरक में सहे गये दुःख का स्मरण होने मात्र से ही जी को ओज नहीं रुचता । जब स्मरणमात्र से इतना दुःख होता है तब भोगने वालों की क्या दशा होगी ? जीव को नरक में ले जाने वाले कुकर्म उपार्जित नहीं करने चाहिये। गर्भवास और बाल्यावस्था के दुःख गभंते इण दुक्खं सहियं दुस्सहं णरयस्स सुविसेसं । बालत्तणेण सहियं तं सयलं लोयपच्चक्खं ॥ २३ ॥ अन्वयार्थ :(गन्भते) गर्भ में (इण) जो (दुस्सह) दुरसह (दुपख) दुःख (सहियं) सहे हैं वे (णस्यस्य) नरक से (सुविसेस) सुविशेष हैं । (बालत्तणेण) बाल्यावस्था | में जो दुःख (सहियं) सहे हैं (तं) वे (सयलं) सब (लोय) लोगों के लिये (पच्चवखं) प्रत्यक्ष हैं। संस्कृत टीका :। रे जीव ! अस्मिनसंसारमध्ये त्वया गर्भवासे कीरशं दुःखं भुक्तम् ? श्रृणु | कधयामि । तद्गर्भ नरकदुःखादधिकं दुःखं भुक्तम् । उक्तञ्च : सूई अग्गवणाइस्स रुज्जमाणस्स गोयमा । जावइ जंतो णो दुःखं गम्भे अगुणं तहा ।। इति मत्वा गर्भवासोत्पन्नं दुःखं नरकस्य च दुःखमेकसशं नेयम् । पुनस्त्वया | बालावस्थायां नरकसरशं दुःखं भुक्तम् । तद्दुःखं सर्वे-लोका ज्ञानन्ति । टीकार्थ : रे जीव । इस संसार में तुमने गर्भवास में जो दुःख भोगे उन्हें तुम सुनो, मैं उसका कथन कर रहा हूँ। तुमने गर्भ में जरक के दुःखों से भी अधिक दुःख | भोगा है। कहा भी है - सूई अग्गवणाइस्स --
SR No.090408
Book TitleSamboha Panchasiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGautam Kavi
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy