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________________ 4 सर्वत्रिशुद्धज्ञानाधिकार जो समयपाहुडमिणं पडिहूणं प्रत्थतचदो गाउं । त्थे ठाही चेया सो होही उत्तमं सोक्खं ॥ ४१५॥ जो भि समयप्राभृतको, पढ़कर सत्यार्थ तत्त्वसे लखकर । श्रर्थमध्य ठहरेगा, वह सहजानन्दमय होगा ॥४१५॥ यः समयप्राभृतमिदं पठित्वा अर्थतत्त्वतो ज्ञात्वा । अर्थ स्थास्यति चेतयिता स भविष्यत्युत्तमं सौख्यं ॥ ४१५|| यः खलु समयसारभूतस्य भगवतः परमात्मनोऽस्य विश्वप्रकाशकत्वेन विश्वस्व ६५६ नामसंज्ञ – ज, समयपाहुड, इम, अत्थतच्चदो, अत्थ, चैषा, त, उत्तम सोक्ख । धातुसंज्ञ - पढ़ पहने, जाण अवबोधने ट्ठा गतिनिवृत्ती हो सत्तायां । प्रातिपदिक- यत् समयप्राभृत, इदम् अर्थतत्त्वतः, अर्थ नेतृ उत्तम सौद : अलधालु पठने, ज्ञा अवबोधने, ष्ठा गतिनिवृत्तौ भू सत्तायां । पद विवरण- जो यः - प्रथमा ए० । समयपाहुडं समय प्राभृतं द्वि० ए० । इणं इदम् - वि० ए० । पडिहूणं पठित्वा प्रयोग -- मोक्षलाभ के लिये मुनिलिङ्ग धारण कर उस देहलिङ्गसे उपेक्षा कर दर्श ज्ञानचारित्रवृत्तिमय शुद्ध ज्ञानघन प्रारमतत्वमें उपयोग करना ।। ४१४ ॥ अब पूज्य श्री कुन्दकुन्दाचार्य इस ग्रंथको पूर्ण करते समय इसकी महिमा के रूपमें पढ़नेके फलकी गाथा कहते हैं - [यः चेतयिता ] जो चेतयिता पुरुष ( भव्यजीव) [ इदं समयप्राभृतं पठित्वा ] इस समय प्राभृतको पढ़कर [प्रर्थतस्त स्वतः ज्ञात्वा ] अर्थ से प्रोर तत्त्वसे जान कर [ अर्थे स्थास्यति ] इसके अर्थ में ठहरेगा [सः ] वह [ उत्तमं सौख्यं भविष्यति ] उत्तम सुखस्वरूप होगा । तात्पर्य - जो भव्य जीव समयसारके वाच्य समयसार में स्थित होगा वह उत्तम सुखस्वरूप होगा । टोकार्थ - जो भव्य पुरुष निश्चयतः समयसारभूत भगवान परमात्माका विश्वप्रका कपना होनेके कारण विश्वसमयका प्रतिपादन करनेसे स्वयं शब्दब्रह्मस्वरूप इस शास्त्रको करके विश्वप्रकाशन में समर्थ परमार्थभूत चित्प्रकाशस्वरूप श्रात्माको निश्चित करता हुआ अर्थ से और तत्त्व से जानकर इसी अर्थभूत भगवान एक पूर्णविज्ञानघन परमब्रह्म में सर्व स्थित होगा वह साक्षात् तत्क्षण प्रकट होने वाले एक चैतन्यरस से परिपूर्ण स्वभाव में सुस्थित और निराकुल होनेसे परमानन्दशब्दवाच्य उत्तम अनाकुलत्व लक्षण वाला सौख्यस्वरूप स्वयं ही होगा । भावार्थ - यह समयप्राभृतनामक शास्त्र समयको याने पदार्थ व आत्माको बहने वाला है । जो इस शास्त्रको पढ़कर इसके यथार्थ अर्थ में ठहरेगा वह परमब्रह्मको अनुभवेगा । इससे
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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