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समयसार
मेव परमार्थ बुद्धया चेतयंते ते समयसारमेव न चेतयंते । य एव परमार्थं परमार्थबुद्धया चेतयंते ते एव समयसारं चेतयंते || अलमल मतिजल्पविकल्प रनरूप रयमिह परमार्थश्चिन्त्यतां नित्यमेकः । स्वरसविस पूर्णज्ञान विस्फूर्तिमात्रान खलु समयमारादुत्तरं किंचिदस्ति ।। २४४॥ इदमेकं जगच्चक्षुरक्षयं याति पूर्णतां । विज्ञानघनमानंदमयमध्यक्षतां नयत् ॥ २४५।। ।। ४१४ ।। निश्चयनयन, मोक्षपथ, सर्वलिङ्ग । मूलधातु भण शब्दार्थः इषु इच्छायां । पद विवरण- बबहारिओ व्यावहारिकः णओ नयः प्रथमा एक० । पुण पुनः- अव्यय । दोणि-द्वितीया बहु० । द्वे द्वितीया द्विवचन | धि - अव्यय लिया। द्विवचन | भणद भगत-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन किया | मोक्खपहे मोक्षपथे- सप्तमी एक० णिच्छयणओ निश्चयनयः- प्रथमा एक० । ण नअव्यय । इच्छुइ इच्छति बर्तमान लद् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । मोक्त्रपहे मोक्षपथे सप्तमी ए० । सव्वलिंगाणि सर्व लिंगानि द्वितीया बहुवचन ॥१४॥
भी लिङ्गको मोक्षमार्ग नहीं मानता ।
तथ्य प्रकाश--- - (१) द्रव्यलिङ्गके बिना मोक्ष नहीं, द्रव्यलिङ्गसे मोक्ष नहीं । ( २ ) समस्त परिग्रहों का पूर्ण त्याग होनेपर जो देहमात्र रहता है वह मुनिलिङ्ग है । ( ३ ) परिग्रह का परिमाण कर व्रतों का पालन करते हुए जो भेष रहता है वह श्रावकलिङ्ग है । (४) कोई बाह्य परिग्रहका त्याग न करें, द्रव्यलिंग धारण न करे और अन्तरंग परिग्रह कषाय छूट जाय, यह नहीं हो सकता । ( ५ ) कोई बाह्य परिग्रहका त्याग कर दे उसके अन्तरंग परिग्रह कषाय छूट ही जाय, यह नियम नहीं है । (६) व्यवहारनय कहता है कि श्रमण और श्रमणोपासक ऐसे दो प्रकारके द्रव्यलिङ्ग मोक्षमार्ग है । (७) निश्चयनयके मत में दोनों ही प्रकार के द्रव्यलिङ्ग मोक्षमार्ग नहीं है । ( ८ ) व्यवहारका विषय भेद, संयोग, उपचार, निमित्तनैमित्तिक व श्राधाराधेय सम्बन्ध आदि है, अतः केवल परिपूर्ण एक द्रव्यको न देखनेसे व्यवहार अपरमार्थ है | ( 8 ) द्रव्यलिङ्ग अर्थात् देहलिङ्ग मोक्षमार्ग है यह प्ररूपण व्यवहार है, परमार्थं नहीं । (१०) द्रव्यलिङ्गके विकल्पसे अतिक्रान्त दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप शुद्ध ज्ञान ही एक मैं हूं, इस प्रकारका निर्मल अभेद अनुभव मोक्षमार्ग है यह परमार्थ है । ( ११ ) जो व्यवहारको ही परमार्थ समझ लेते है वे समयसारको नहीं अनुभव सकते । ( १२ ) जो परमार्थको ही परमार्थबुद्धिसे अनुभवते हैं वे समयसारको अनुभवते हैं । ( १३ ) समयसार से अर्थात् सहजात्मस्वरूपसे अधिक उत्कृष्ट तत्त्व अन्य कुछ नही है ।
सिद्धान्त - ( १ ) रत्नत्रयभाव केवल एक स्वद्रव्य के अनुभवरूप होनेसे परमार्थ मोक्षमार्ग है । (२) द्रव्यलिंग परद्रव्यका परिणाम होनेसे आत्माका मोक्षमार्ग नहीं ।
दृष्टि - १- शुद्धभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिकनय । २ परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकनय
(२४३, २६ ) |
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