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________________ सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार ६४६ प्रथैतदेव साधयति ण वि एस मोक्खमग्गो पाखंडीगिहिमयाणि लिंगाणि । दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा विति ॥४१०॥ पाखण्डी व गृहस्थों-का लिङ्ग न कोइ मोक्षका पय है। दर्शन ज्ञान चरित्र हि, मोक्षका मार्ग जिन कहते ॥४१०॥ नाप्येष मोक्षमार्ग: पाखंडिगृहिमयानि लिङ्गानि। दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग जिना विदंति ।। ४१० ।। न खलु द्रव्यलिगं मोक्षमार्गः शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात् । तस्माद्दर्शनज्ञानचारित्राण्येव मोक्षमार्गः, प्रात्माश्रितत्वे सति स्वद्रव्यत्वात् ॥४१०॥ - नामसंज्ञ- ण, वि, एत, मोक्खमग्ग, पाखंडीगिहिमय, लिङ्ग, दसगणाणचरित्त, मोक्खमग, जिण । धातुसंज्ञ-विद ज्ञाने । प्रातिपदिक - न, अपि, एतत्, मोक्षमार्ग, पाखण्डिगृहिमय, लिङ्ग, दर्शनज्ञानचारित्र. मोक्षमार्ग, जिन । मूलधातु-विद ज्ञाने अदादि । पडविवरण–ण विन अपि-अव्यय । एस एषः-प्रथमा एकवचन । मोक्खमग्गो मोक्षमार्ग:-प्र० ए० । पाखंडीगिहिमयाणि लिंगाण पारण्डिाहमयानि लिङ्गानिप्र. बहु० । दसणणाणचरित्ताणि दर्शनज्ञानचारित्राणि-द्वि० बहु । मोक्खमम्गे मोक्षमार्ग-द्वि० ए० । जिणा जिना:-प्र० बहु० । विति विदन्ति- वर्तमान लट् अन्य पुरुष बहुवचन क्रिया ।। ४१० ।। तात्पर्य–परमार्थतः सम्प्रदर्शन ज्ञान चारित्रका एकत्व हो साक्षात् मोक्षमार्ग है। टोकार्थ--निश्चयसे द्रव्य लिंग मोक्षका मार्ग नहीं है, क्योंकि शरीरके प्राश्रित होनेसे यह परद्रव्य है । इस कारण दर्शनज्ञान चारित्र ही मोक्षमार्ग हैं; क्योंकि इसको याने दर्शनज्ञान चारित्ररूप मोक्षमार्गको प्रात्माश्रित होनेसे स्वद्रव्यपना है । भावार्थ-मोक्ष सब कमोंके प्रभाव रूप आत्माका परिणाम है, इस कारण मोक्षका कारण भी प्रात्माका परिणाम ही हो सकता। दर्शनज्ञानचारित्र प्रातमाके परिणाम हैं, इसलिये निश्वयसे दर्शनज्ञानचारित्रात्मक आत्म परिणाम हो मोक्षका मार्ग है । लिंग देहमय है, देह पुद्गलद्रव्यमय है; इसलिये देह प्रात्माके मोक्षका मार्ग नहीं है । परमार्थसे अन्यायका अन्यद्रव्य कुछ नहीं करता यह नियम है । प्रसंगविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि देहलिग मोक्षमार्ग नहीं है । अब इस माथामें इसी विषयका समर्थन किया गया है। तथ्यप्रकाश-१- परद्रव्य प्रात्माका मोक्षमार्ग नहीं है । २- द्रव्यलिंग शरीराश्रित होनेसे परद्रव्यरूप है। ३- प्रात्माश्रित परिणाम स्वद्रव्यरूप है। ४- प्रात्माश्रित परिणाम मात्माका मोक्षमार्ग हो सकता है । ५- सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र प्रात्मपरिणाम हैं प्रतः यह रत्नत्रय मोक्षमार्ग है। सिद्धान्त-१- अविकार ज्ञानस्वरूप प्रात्मतत्त्वके प्राश्रयसे मोक्ष होता है ।
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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