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समयसार रसो ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानरसयोयंतिरेकः । न स्पर्शो ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानस्पर्शयोयतिरेकः । न कर्म ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानकर्मग्गोय॑तिरेकः । न धर्मों ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानधर्मयोर्ध्यतिरेकः । नाधर्मों ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानाधर्मयोर्व्यतिरेक: । न कालो ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानकालयोयतिरेकः । नाकाशं ज्ञानमचेतनत्वात् ततो ज्ञानाकाशयोव्यतिरेकः । नाध्यवसानं ज्ञानमचेतनत्वात् ततो जानाध्यवसानयोर्व्यतिरेकः । इत्येवं भानस्य मरेत्र परद्रन्यः सह व्यतिरेको निश्चयसाधितो द्रष्टव्यः । अथ जीव एवैको ज्ञानं चेतनत्वात् पंचमी एक । सत्थं शास्त्र-प्रथमा एक० । ण न-अव्यय । जाणए जानाति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । किंचि विचित्-अध्यय । तम्हा तस्मात्-पचमी एक० । अण्णं अन्यत् णाणं ज्ञान-प्रथमा [अभ्यवसानं अन्यत्] अध्यवसानको अन्य वहते हैं। [यस्मात् ] कि [नित्यं जानाति] जीव निरन्तर जानता है [तस्मात् तु] इसलिये [जीवः] जीव [ज्ञायक: ज्ञानी] ज्ञायक है, वही ज्ञानी है [2] और ज्ञानं] ज्ञान [ज्ञायकात् अध्यतिरिक्तं ज्ञातव्यं] ज्ञायकसे अभिन्न है ऐसा जानना चाहिए । [तु] और [बुधाः] ज्ञानी ज्ञानं सम्यादृष्टिी ज्ञान को ही सम्यग्दृष्टि, [संयम संयम [अंगपूर्वग पूध अंगपूर्वगत सूत्र च धमाधम और धर्म अधर्म [तथा तथा [प्रवज्यां] दीक्षा [अभ्युपयांति] मानते हैं।
तात्पर्य-ज्ञान समस्त परद्रव्योंसे भिन्न है, समस्त परभावोसे भिन्न है तथा ज्ञान आत्माको सर्वविभावपरिणतियोंसे भिन्न है।
टोकार्थ-द्रव्यश्रत ज्ञान नहीं है, क्योंकि वचन प्रचेतन है, इस कारण ज्ञान और श्रुतमें भेद है । शब्द ज्ञान नहीं है, क्योंकि शब्द अचेतन है, इस कारण ज्ञान और शब्दमें भेद है । रूप ज्ञान नहीं है, क्योंकि रूप अचेतन है, इस कारण वर्ण और ज्ञान में भेद है। गंध ज्ञान नहीं है, क्योंकि गन्ध प्रचेतन है, इस कारण गन्ध और ज्ञानमें भेद है । रस ज्ञान नहीं है, क्योंकि रस अचेतन है, इस कारण रस और ज्ञान में परस्पर भेद है । स्पर्श ज्ञान नहीं है, क्योंकि स्पर्श अचेतन है, इस कारण स्पर्श और ज्ञानमें भेद है । कर्म ज्ञान नहीं है, क्योंकि कर्म अचेतन है, इस कारण कर्म और ज्ञानमें भेद है। धर्मद्रव्य ज्ञान नहीं है, क्योंकि धर्म अचेतन है, इस कारण धर्मद्रव्य और ज्ञान में भेद है। अधमंद्रव्य ज्ञान नहीं है, क्योंकि अधर्मद्रव्य अचेतन है, इसलिए अधर्मद्रव्यका और ज्ञानका भेद है । कालद्रव्य ज्ञान नहीं है, क्योंकि काल प्रचेतन है, इस कारण काल प्रौर ज्ञानमें भेद है । प्राकाशद्रव्य ज्ञान नहीं है, क्योंकि प्राकाश अचेतन है, इस कारण प्राकाश और ज्ञानमें भेद है । अध्यवसान ज्ञान नहीं है, क्योंकि अध्यवसान अचेतन है, इस कारण ज्ञान और अध्यवसान में भेद है । इस प्रकार यों ज्ञानका समस्त परद्रव्योंके साथ व्यतिरेक निश्चयसाधित देखना चाहिए याने अनुभवना