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________________ ६२० समन्वजास मनसा च तन्मिथ्या से दुष्कृतमिति ॥४३॥ तमिति ॥ ४४ ॥ यदहमचीकर वाचा च तन्मिथ्या में यदहमकार्षं वाचा च तन्मिथ्या में दुष्कृदुष्कृतमिति ||४५ || यत्कुर्वतमप्मन्यं समवज्ञासं बाचा च तन्मिथ्या में दुष्कृतमिति ॥ ४६ ॥ यदहमकार्षं कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ॥ ४७ ॥ यदहमचीकरं कायेन च तन्मिथ्या में दुष्कृतमिति ॥४८॥ यत्कुर्वंतमप्यन्यं सम न्यज्ञास कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ॥ ४६ ॥ मोहाद्यदहमकार्ष समस्तमपि कर्म तत्प्रतिक्रम्य । श्रात्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ||२२७|| इति प्रतिक्रमण कल्पः समाप्तः । समयसार न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचाच कायेन चेति । १| न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च वाचा चेति |२| न करोमि न कारयामि न कुर्वतमप्यन्यं समनुजानामि मनसा च कायेन चेति । ३ । न करोमि न वेदयमान कर्मफल, सुखित, दुःखित, च यत्, चेतयितृ, तत् तत् पुनर् अपि, बीज, दुःख, अष्टविध । दुष्कृत मिथ्या हो ||४४ || जो मैंने वचनसे कराया, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ॥ ४५ ॥ | जो मैंने वचनसे धन्य करते हुएका अनुमोदन किया, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ।। ४६ ।। जो मैंने कायसे किया, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ||४७|| जो मैंने कायसे कराया, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ||४८ ॥ जो मैंने कायसे अन्य करते हुएका अनुमोदन किया, वह मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ॥४६॥ अब इस भावको कलशरूप काव्य में कहते हैं— मोहाय इत्यादि । श्रर्थ- मैंने मोहसे जो कर्म किये हैं, उन समस्त कर्मीका प्रतिक्रमण करके में निष्कर्म याने समस्त कर्मोसे रहित चैतन्य स्वरूप ग्रात्मा में आत्माके द्वारा निरंतर बर्त रहा हूं । भावार्थ - भूतकाल में किये गये कर्मको ४६ भंगपूर्वक मिथ्या करने वाला प्रतिक्रमण करके ज्ञानी ज्ञानस्वरूप श्रात्मामें लोन होकर निरन्तर चैतन्यस्वरूप आत्माका अनुभव करे । इस प्रकार प्रतिक्रमण -कल्प याने प्रतिक्रमण किया जानेका विधान समाप्त हुआ । अब आलोचनाकल्प कहते हैं- मैं ममसे, वचन से तथा कायसे न तो करता हूं, न कराता हूं और न अन्य करते हुये का अनुमोदन करता हूं || १ || मैं मनसे, वचनसे न तो करता हूं, न कराता हूं, न श्रन्य करते हुयेका अनुमोदन करता हूं ||२|| मैं मनसे तथा कायसे न तो करता हूं, न कराता हूं, न श्रन्य करते हुयेका अनुमोदन करता हूं ||३|| मैं वचनसे तथा काषसे न तो करता हूं, न कराता हूं, न अन्य करते हुयेका अनुमोदन करता हूं ||४|| मैं मनसे न तो करता हूं, न कराता हूं, न : :
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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