SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 651
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार करणाहकारनिर्भरपुरुषाधिष्ठितच्यापृतकरपुरुषशरीराकारः कुम्भः स्यात्, न च तथास्ति द्रध्यांतरस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्यादर्शनात् । यद्येवं तहि मृत्तिका कुम्भकारस्वभावेन नौरपद्यते किंतु मृत्तिकास्वभावेनैव, स्वस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्य दर्शनात् । एवं च सति मृत्तिकायाः स्वस्वभावानतिक्रमान्न कुम्भकारः कुम्भस्योत्पादक एव मृत्तिकैव कुम्भकारस्वभावमस्मृशंतो स्वस्वभावेन कम्भभावेनोत्पद्यते । एवं सर्वाण्यपि द्रव्याणि स्वपरिणामपर्यायेणोत्पद्यमानानि कि निमित्तभूतगन्यांतरस्वभावेनोत्पद्यते किं स्वस्वभावेन ? यदि निमित्तभूतद्रव्यांतरस्वभावेनोत्पद्यते तदा निमित्तभूतपरद्रध्याकारस्तत्परिणाम: स्यात्, न च तथास्ति द्रव्यांतरस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पादस्थादर्शनात् । यद्येवं तहि न सर्वद्रव्याणि निमित्तभूतपरद्रव्यस्वभावेनोत्पद्यते गतौ । पदविवरण-अण्णदवियेण अन्यद्रष्येण-तृतीया एक० । अण्णदवियस्स अन्यद्रव्यस्य-षष्ठी एक [न क्रियते] नहीं किया जा सकता [तस्मात्तु] इस कारण यह सिद्धांत हुआ कि [सर्वद्रव्याणि] सभी द्रब्ध [स्वभावेन] अपने अपने स्वभावसे [उत्पद्यन्ते] उपन्न होते हैं । तात्पर्य-निश्चयतः किसो द्रव्यके द्वारा किसी अन्यद्रव्यका कुछ भी रंचमात्र भी उत्पाद व्यय नहीं किया जा सकता। टोकार्थ-ऐसी प्राशंका नहीं करनी चाहिए कि परद्रव्य जीवको रागादिक उत्पन्न कराता है, क्योंकि अन्यद्रव्यके द्वारा प्रन्यद्रव्यके गुणोंको उत्पन्न करानेकी असमर्थता होनेके कारण सब द्रव्योंमें स्वभावसे हा उत्पाद होता है । यही दृष्टांतपूर्वक स्पष्ट करते हैं कि मृत्तिका घटभादसे उत्पन्न होती हुई क्या कुंभकारके स्वभावसे उत्पन्न होती है या मृत्तिकाके स्वभावसे ? यदि कुम्भकारके स्वभावसे उत्पन्न होती है तो घट बनानेके अहंकारसे भरे हुए पुरुष द्वारा अधिष्ठित और व्याप्त हाथ वाले पुरुषके प्राकाररूप घड़ा होना चाहिये अर्थात् कम्हारके शरीरके प्राकार घड़ा बनना चाहिये, किन्तु ऐसा नहीं होता। क्योंकि अन्यद्रव्यके स्वभावसे अन्यद्रव्यके परिणामका उत्पन्न होना नहीं देखा जाता । और ऐसा होनेपर मृत्तिका कुम्भकार स्वभावसे तो उत्पन्न नहीं होती, किन्तु मृत्तिकास्वभावसे ही उत्पन्न होती है, क्योंकि अपने स्वभावसे ही द्रध्यके परिणामका उत्पाद देखा जाता है। ऐसा होनेपर मृत्तिकाके अपने स्वभावका उल्लंघन न होनेसे कुम्भकार घडेको उत्पन्न करने वाला नहीं है, किन्तु मिट्टी हो कुम्भकारके स्वभावको नहीं स्पर्शती हुई अपने हो स्वभावसे कुम्भभावसे उत्पन्न होती है। इसी प्रकार सब द्रव्य अपने परिणामरूप पर्यायसे उत्पन्न होते हुए क्या वे निमित्तभूत अन्यद्रव्यके स्वभावसे उत्पन्न होते हैं या अपने ही स्वभावसे उत्पन्न होते हैं ? यदि निमित्तभूत भन्यद्रव्यके स्वभावसे उत्पन्न होते है तो निमित्तभूत परद्रव्यके प्राकार उसका परिणाम होना
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy