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________________ ५४४ समयसार दसणणाणचरितं किंचिवि णत्यि दु अचेयणे विसये । तह्मा किं घादयदे चेदयिदा तेसु विसएसु ॥३६६।। दसणणाणचरितं किंचिवि णस्थि दु अचेयणे कम्मे । तह्मा किं धादयदे चेदयिदा तेसु कम्मेसु ॥३६७।। दंसणणाणचरितं किंचिवि णस्थि दु अचेयणे काये। तमा किं धादयदे चेदयिदा तेसु कायेसु ॥३६॥ णाणस्स दंसणस्स य भणियो धागो तहा चरित्तस्स । मावि तहिं पुग्गलदबम्स कोऽवि घानो उ णिहिट्ठो ॥३६॥ जीवस्स जे गुणा केइ ण संति खलु ते परेसु दब्बेसु । तह्मा सम्माइहिस्स पत्थि रागो उ विसएसु ॥३७॥ रामो दोसो मोहो जीवस्सेव य अणण्णपरिणामा । एएण कारणेण उ सदादिसु णत्थि रागादी ॥३७१।। मामझ-दसणणाणचरित, किंचि, वि, ण, दु, बधेयण, बिसय, त, कि, त, विसय, त, कि, चेदबिदा, त, विसय, कम्म, त, कम्म, काय, णाण, दंसण, भणिअ, पाअ, तहा, चरित, तहि, पुग्गलदध्व, क; दृष्टि-१- स्वाभाविक उपचरिस स्वभाव व्यवहार (१०५) । २- कारककारविभेदक सद्भुतम्यवहार (७३) । ३-शुद्धनय (४६) | प्रयोग-परमशान्तिके अर्थ सर्वविकल्पवादोंसे हटकर अपनेमें अपना प्रात्मसर्वस्व निरखना ।। ३५६-३६५ ।। gब युक्तिपूर्वक कहते हैं कि प्रशानसे अपना ही बात होता है--[दर्शनमारचारित्र दर्शन ज्ञान धारित्र [अचेतने विषये तु] अचेतन विषयमें तो [किचिदपि नास्ति] कुछ भी नहीं है [तस्मात्] इस कारण [चेतयिता] प्रात्मा [तेषु विषयेषु] उन विषयोंमें [कि हंति] क्या बात करता है ? [दर्शनशानधारित्रं] दर्शन शान चारित्र [अचेतने कर्मणि तु] अचेतन कर्ममें [किंचिदपि नास्ति] कुछ भी नहीं हैं। [सस्मात्] इस कारण [वेतयिता] प्रात्मा [सत्र कर्मरिण] उस कर्ममें [कि हंति] क्या बात करता है ? [वर्सनमानधारित) दर्शन ज्ञान 'पारित्र [अचेतने काये तु] अचेतन कायमें [किधिपि नास्ति] कुछ भी नहीं है [तस्मात्]
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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