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समयसार स्वभावेन श्वेतयतीति व्यबहियते । तथा चेतयितापि दर्शन गुणनिर्भरस्वभावः स्वयं पुद्गलादि परद्रव्यस्वभावेनापरिणममान: पुद्गलादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणाम यन् पुद्गलादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनो दर्शनगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानः पुद्गलादिपरद्रव्यं चेत. यितृ निमित्तकैनात्मनः स्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन पश्यतीति व्यवहियते । अपि च--यथा च सैव सेटिका श्वेतगुणनिर्भरस्वभावा स्वयं कुड्यादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणम : माना कुड्यादिपरद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणामयंती कुड्यादिपरद्रव्यनिमित्तकेन:त्मनः श्वेतगुणनिर्भरस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमाना कुड्यादिपरद्रव्यं सेटिका निमित्तकेनात्मनः स्वभावस्य एक । विणिन्छओ विनिश्चयः-प्रथमा एक० । गाणदेसण चरित्ते ज्ञानदर्शनचरित्रे-सप्तमी एक० । भणिओं तो भी ज्ञान में उन ज्ञेयोंका प्रवेश नहीं है।
अब काव्यमें बताते हैं कि ज्ञान में राग-द्वेषका उदय कब तक है— रागद्वेष इत्यादि । अर्थ--यह जान जब तक ज्ञानरूप नहीं होता और ज्ञेय ज्ञेयभावको प्राप्त नहीं होता तक तक रागद्वेष दोनों उदित होते हैं । इसलिये यह ज्ञान अज्ञानभाव को दूर कर जानरूप होप्रो जिससे कि भाव अभावको तिरस्कृत करता हुमा ज्ञान पूर्णस्वभाव प्रकट होता है। भावार्थजब तक ज्ञान ज्ञानरूप नहीं होता ज्ञेय ज्ञेयरूप नहीं होता तब तक राग-र दोनों उत्पन्न होते रहते हैं । इसलिये यह ज्ञान अज्ञान भावको दूर करके ज्ञानरूप होवे जिससे कि ज्ञान पूर्ण स्वभावको प्राप्त हो जाय । यह भावना यहाँ की गई है।
प्रसंगविवरण– अनन्तरपूर्व गाथासप्तक में व्यवहारसे का कर्मको अन्य तथा निश्चय में कर्ता कर्मको अनन्य बताया था। अब इस गाथादशकमें शान्तपूर्वक निश्चयतः सविवरण एक वस्तु में कर्तृकर्मत्वके अभेदको बताया है।
तथ्यप्रकाश-१-ज्ञायक प्रात्मा नि सत् है, जय हर बस्त.. पत्र सत् है। . जायक ज्ञेयका कुछ नहीं, जायक नाय का ही है पाने लायक नायक है । ३- दर्शक भिन्न सन् है, दृश्य भिन्न सत् है । - दर्शक हायका कुछ नहीं: दर्शक दर्शकका ही है गाने दर्शक दर्शक ही है। । - संयत पोहर --त्यागी भिन्न सत् है त्याज्य परवस्तु भिन्न मत् है । 1- त्यागी न्यायका कुछ नहीं, स्वागीबासीका ही है याने त्यागो (अपोहक) त्यागी ही है। ७-प्रदान-श्रद्धाता भिन्न सन् ६, थडेय जीवादि पर पदार्थ भिन्न सत् है । ८- श्रद्धान श्रद्धेय का कुछ नही, श्रद्धान श्रद्धानका ही है याने श्रद्धान श्रद्धान ही है 1 ६- ज्ञाता मात्मा बटादिक पर शेयको व्यवहारसे जानता है, किन्तु वह परद्र बसे तन्मय नहीं होता। १०- प्रारमा पटादिक पाद्रव्य दृश्यको व्यवहारसे देखता है. किन्तु वह दृश्म परद्रव्यरो जन्मय नहीं होता ।