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________________ सर्वविशुद्धशाधिकार ५८६ खल्वन्यश्चेतयिता चेतयितुः किंतु स्वस्वाम्यंशावेवान्यो । किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तहि न कस्यापि दर्शकः, दर्शको दर्शक एवेति निश्वयः । अपि च सेटिका तावच्छ्वेत गुणनिर्भर स्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण श्वत्यं कुड्यादि परद्रव्यं । प्रया कुड्य देः परद्रव्यस्य श्र्वेत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतस्व संबंधी मीमांस्यते । यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनोज्ञानं भवदातव भवति इति तत्त्वसंबंधे जीवति सेटिका कुड्यादेर्भवती कुड्यादिरेव भवेत् । एवं सति सेटि कायाः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतर संक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद् द्रव्यस्यास्त्युच्छेदः ? ततो न भवति सेटिका कुड्या देः । यदि न भवति सेटिका कुड्यावस्तह कस्य सेटिका भवति ? सेटि काया एव सेटिका भवति । ननु कतरान्या सेटिका सेटिकाया यस्याः सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका से टिकायाः किंतु स्वस्वाभ्यंशा वेदान्यो । किमत्र साध्यं स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तर्हि न कस्यापि सेटिका, सेटिका सेटिकैवेति निश्चयः । यथायं दृष्टांतस्तथायं दाष्टन्तिक: -- चेतयितात्र तावद् ज्ञानदर्शन गुणनिर्भरपरापोहनात्मक स्वभावं द्रव्यं । तस्य तु व्यवहा वि अपि - अव्यय । सयेण स्वकेन भावेण भावेन-तृतीया एक० । पस्सइ पश्यति - वर्तमान लट् अन्य पुरुष परद्रव्यको अपने स्वभावसे परिरणमन नहीं कराती हुई तथा जिसको कुड्यादि परद्रव्य निमित्त हैं, ऐसे श्वेतगुण से भरे अपने स्वभाव के परिणामसे उत्पन्न होती हुई तथा जिसको सेटिका निमिस है ऐसा अपने स्वभावके परिणामसे उत्पन्न होते हुए कुटी प्रादिक परद्रव्यको अपने स्वभावसे सफेद करती है, ऐसा व्यवहार किया जाता है । उसी तरह दर्शन गुरणसे परिपूर्ण स्वभाव वाला चेतयिता आत्मा भी स्वयं पुद्गल आदि परद्रव्यके स्वभावसे परिणमन नहीं करता हुआ, और पुद्गल मादि परद्रव्यको भी अपने स्वभावसे परिणमन नहीं कराता हुआ तथा जिसको पुद्गल आदि परद्रव्य निमित्त हैं ऐसा प्रपने दर्शन गुणसे भरे स्वभाव के परिणाम से उत्पन्न होता हुथा तथा जिसको चेतयिता निमित्त है ऐसे अपने स्वभाव के परिणामसे उत्पन्न होते हुए पुद्गलादि परद्रव्यको अपने स्वभावसे देखता है ऐसा व्यवहार किया जाता है । अपि च-- जैसे श्वेतगुरणसे परिपूर्ण स्वभाव वाली सेटिका स्वयं कुड्यादि परद्रव्यके स्वभावसे परिणमन नहीं करती हुई, तथा कुड्यांदि परद्रव्यको अपने स्वभावसे नहीं परिणमाती हुई, और जिसको कुड्यादि परद्रव्य निमित्त है ऐसा श्वेतगुण से भरे अपने स्वभाव के परिणाम से उत्पन्न होती हुई, तथा जिसको सेटिका निमित्त हैं ऐसा अपने स्वभाव के परिणामसे उत्पन्न कुटी आदि परद्रव्यको सेटिका अपने स्वभावसे श्वेत करती है । ऐसा व्यवहार किया जाता है । उसी तरह ज्ञानदर्शन गुणसे भरा परके अपोहन (त्याग) रूप स्वभाव वाला यह चेतयिता
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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