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________________ '== समसार भरस्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण दृश्यं पुद्गलादि परद्रव्यं । अथात्र पुद्गलादेः परद्रव्यस्य दृश्यस्य दर्शक श्वेतयिता किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतत्त्व संबंधो मीमांस्यते-- यदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवति इति तस्वसंबंधे जीवति चेतपिता पुद्गलादेर्भवन पुद्गलादिरेव भवेत् । एवं सति चेतयितुः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेत्र प्रतिषिद्धत्वात् द्रव्यस्यास्त्युच्छेदः ? ततो न भवति चेतयिता पुद्गलादेः । यदि न भवति चेतयिता पुद्गलादेस्तहि कस्य चेतयिता भवति ? चेतयितुरेव चेतयिता भवति । ननु कतरोन्यश्वेतयिता चेतपितुर्यस्य चेतयिता भवति ? न वेन - तृतीया एक जाणइ जानाति वर्तमान लट् अन्य पुरुष एकवचन । णाया ज्ञाता - प्रथमा एकवचन | चेतयिता स्वद्रव्यका उच्छेद हो जायगा, किन्तु द्रव्यका उच्छेद होता नहीं, क्योंकि अन्यद्रव्य को पलटकर अन्यद्रव्य होनेका प्रतिषेध पहले हो कर चुके हैं। इसलिये चेतयिता पुद्गलादिक का नहीं हो सकता । प्रश्न- चेतयिता पुद्गल श्रादिका नहीं है तो चेतयिता किसका है ? उत्तर - चेतयिताका ही चेतयिता है। प्रश्न -- वह दूसरा चेतयिता कौनसा है जिसका यह चेतयिता है ? उत्तर - तयिता से अन्य चेतयिता तो नहीं है । तो क्या है ? स्वस्वामिश्रंश ही धन्य हैं। प्रश्न- - यहाँ स्वस्वामिश्रंशके व्यवहारसे क्या साध्य है ? उत्तर - कुछ भी नहीं । तब यह ठहरा कि पोहक (त्यागने वाला) किसीका भी नहीं है, अपोहक अपोहक ही है ऐसा निश्चय है | अब व्यवहारका व्याख्यान किया जाता है जैसे श्वेतगुरासे परिपूर्ण स्वभाववाली वही सेटिका स्वयं कुटी आदि परद्रव्यके स्वभावसे नहीं परिणमती हुई तथा कुड्यादिक परद्रव्यको अपने स्वभावसे नहीं परिणमाती हुई, जिसको कुड्यादि परद्रव्य निमित्त है, ऐसे अपने श्वेतगुणसे भरे स्वभावके परिणामसे उपजती हुई सेटिका जिसको निमित्त है, ऐसे अपने कुड्यादि स्वभाव के परिणाम द्वारा उत्पन्न होते हुए कुड्यादि परद्रव्यको अपने स्वभावसे सफेद करती है । ऐसा व्यवहार किया जाता है । उसी तरह ज्ञानगुणसे परिपूर्ण स्वभाव वाला चेतयिता श्रात्मा भी स्वयं पुद्गलादि परद्रव्य के स्वभावसे परिणमित नहीं होता हुआ और पुद्गल आदि परद्रव्यको अपने स्वभावसे न परिणमाता हुआा तथा जिसको पुद्गल श्रादि परद्रव्य निमित्त है ऐसे अपने ज्ञानगुणसे भरे स्वभाव के परिणामसे उत्पन्न होता हुआ, जिसको चेतयिता निमित्त हैं ऐसे अपने स्वभाव के परिणामसे उत्पन्न होते हुए पुद्गलादि परद्रव्यको अपने स्वभावसे जानता है, ऐसा व्यवहार किया जाता है । किञ्च -- जैसे श्वेतगुण से परिपूर्ण स्वभाव वाली वही सेटिका स्वयं कुयादि परद्रव्यके स्वभावसे परिणमन नहीं करती हुई, और कुड्यादि
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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