SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 635
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८४ समयसार भयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते---यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञान भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसंबंधे जीवति सेटिका कुख्यादेर्भवंती कुड्यादिरेव भवेत्, एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्र व्यस्यास्त्युच्छेदः, ततो न भवति सेटिका कुड्यादेः । यदि न भवति सेटिका कुड्यादेस्तहिं कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति । ननु कतरान्या सेटिका सेटिकाया यस्याः सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका सेटिकायाः । किंतु स्वस्वाम्यंशावेवान्यो । किमत्र साध्य स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तहि न कस्यापि सेटिका, सेटिका सेटिकवेति निश्चयः । सम्यग्दृष्टि, स्वभाव, विनिश्चय, ज्ञानदर्शनचारित्र, भणित, अन्य, पर्याय, एवं, एव, ज्ञातव्य । मूलपातुभू सत्तायां, श्रु श्रवणे भ्वादि, षिट अनादरे भ्वादि णिजन्त, ज्ञा अवबोधने, दृशिर् प्रेक्षणे, वि ओहाक त्यागे जुहोत्यादि, श्रद् डुधात्र धारणपोषणयोः । पदविवरण-जह यथा-अव्यय । सेडिया सेटिका-प्रथमा एक० । दु तु ण न-अव्यय । परस्स परस्य--षष्ठी एक० । य च-अव्यय । सा-म० ए० । होइ भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया। तह तथा अव्यय । जाणओ ज्ञायक:-प्र० ए०। पासओ दर्शक:-प्रथमा टीकार्थ-इस लोकमें महिया (एफेदी) श्वेतगुणसे भरा हुमा द्रव्य है। कुटी, भीत , प्रादि परद्रव्य व्यवहारसे श्वैत्य है । अब खड़िया और परद्रव्य दोनोंमें परमार्थसे क्या संबंध है ? इसका विचार किया जा रहा है कि श्वेत करने योग्य कुटो आदि परद्रव्यकी श्वेत करने । वालो खड़िया है या नहीं ? यदि सेटिका भींत आदि परद्रव्यकी है, तो ऐसा न्याय है कि जो जिसका हो वह उस स्वरूप ही होता है । जैसे प्रात्माका ज्ञान प्रात्मस्वरूप ही है । ऐसा पर. मार्थरूप तस्वसंबंध जीवित (विद्यमान) होनेपर. सेटिका भीत प्रादिको होती हुई भींत प्रादि । के स्वरूप ही होनी चाहिये, ऐसा होनेपर सेटिकाके निजद्रव्यका तो प्रभाव हो जायगा; परंतु एकद्रव्यका अन्यद्रव्यरूप होना तो पहले ही प्रतिषिद्ध हो जानेसे द्रव्यका उच्छेद नहीं है। इस कारण खड़िया कुटो प्रादि परद्रव्यकी नहीं है । प्रश्न- यदि खडिया भीत प्रादिको नहीं है तो किसकी है ? उत्तर-खड़िया खड़ियाकी ही है। प्रश्न-वह अन्य खड़िया कोनसी है जिस खडियाकी यह खड़िया है ? उत्तर-खड़ियासें भिन्न अन्य कोई खड़िया नहीं है, किन्तु खडियाके स्वस्वामिरूप अंश ही अन्य कहे जाते हैं । प्रश्न - यहाँ स्वस्वामि अंशके व्यव. हारसे क्या साध्य है ? उत्तर-कुछ भी नहीं। इससे यह सिद्ध हुमा कि खडिया अन्य किसी को भी नहीं, खड़िया खड़िया ही है ऐसा निश्चय है । जैसा यह दृष्टांत है वैसा ही यह दान्ति है- इस लोकमें प्रथम तो चेतनेवाला प्रात्मा ज्ञानगुणसे भरे स्वभाव वाला द्रव्य है, उसका व्यवहारसे जानने योग्य पुद्गल प्रादिक परद्रव्य है। अब यहाँ शेय पुद्गल प्रादि परद्रव्यका
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy