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समयसार भयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते---यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञान भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसंबंधे जीवति सेटिका कुख्यादेर्भवंती कुड्यादिरेव भवेत्, एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाद्र व्यस्यास्त्युच्छेदः, ततो न भवति सेटिका कुड्यादेः । यदि न भवति सेटिका कुड्यादेस्तहिं कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति । ननु कतरान्या सेटिका सेटिकाया यस्याः सेटिका भवति ? न खल्वन्या सेटिका सेटिकायाः । किंतु स्वस्वाम्यंशावेवान्यो । किमत्र साध्य स्वस्वाम्यंशव्यवहारेण ? न किमपि । तहि न कस्यापि सेटिका, सेटिका सेटिकवेति निश्चयः ।
सम्यग्दृष्टि, स्वभाव, विनिश्चय, ज्ञानदर्शनचारित्र, भणित, अन्य, पर्याय, एवं, एव, ज्ञातव्य । मूलपातुभू सत्तायां, श्रु श्रवणे भ्वादि, षिट अनादरे भ्वादि णिजन्त, ज्ञा अवबोधने, दृशिर् प्रेक्षणे, वि ओहाक त्यागे जुहोत्यादि, श्रद् डुधात्र धारणपोषणयोः । पदविवरण-जह यथा-अव्यय । सेडिया सेटिका-प्रथमा एक० । दु तु ण न-अव्यय । परस्स परस्य--षष्ठी एक० । य च-अव्यय । सा-म० ए० । होइ भवति-वर्तमान लट् अन्य पुरुष एक० क्रिया। तह तथा अव्यय । जाणओ ज्ञायक:-प्र० ए०। पासओ दर्शक:-प्रथमा
टीकार्थ-इस लोकमें महिया (एफेदी) श्वेतगुणसे भरा हुमा द्रव्य है। कुटी, भीत , प्रादि परद्रव्य व्यवहारसे श्वैत्य है । अब खड़िया और परद्रव्य दोनोंमें परमार्थसे क्या संबंध है ? इसका विचार किया जा रहा है कि श्वेत करने योग्य कुटो आदि परद्रव्यकी श्वेत करने । वालो खड़िया है या नहीं ? यदि सेटिका भींत आदि परद्रव्यकी है, तो ऐसा न्याय है कि जो जिसका हो वह उस स्वरूप ही होता है । जैसे प्रात्माका ज्ञान प्रात्मस्वरूप ही है । ऐसा पर. मार्थरूप तस्वसंबंध जीवित (विद्यमान) होनेपर. सेटिका भीत प्रादिको होती हुई भींत प्रादि । के स्वरूप ही होनी चाहिये, ऐसा होनेपर सेटिकाके निजद्रव्यका तो प्रभाव हो जायगा; परंतु एकद्रव्यका अन्यद्रव्यरूप होना तो पहले ही प्रतिषिद्ध हो जानेसे द्रव्यका उच्छेद नहीं है। इस कारण खड़िया कुटो प्रादि परद्रव्यकी नहीं है । प्रश्न- यदि खडिया भीत प्रादिको नहीं है तो किसकी है ? उत्तर-खड़िया खड़ियाकी ही है। प्रश्न-वह अन्य खड़िया कोनसी है जिस खडियाकी यह खड़िया है ? उत्तर-खड़ियासें भिन्न अन्य कोई खड़िया नहीं है, किन्तु खडियाके स्वस्वामिरूप अंश ही अन्य कहे जाते हैं । प्रश्न - यहाँ स्वस्वामि अंशके व्यव. हारसे क्या साध्य है ? उत्तर-कुछ भी नहीं। इससे यह सिद्ध हुमा कि खडिया अन्य किसी को भी नहीं, खड़िया खड़िया ही है ऐसा निश्चय है । जैसा यह दृष्टांत है वैसा ही यह दान्ति है- इस लोकमें प्रथम तो चेतनेवाला प्रात्मा ज्ञानगुणसे भरे स्वभाव वाला द्रव्य है, उसका व्यवहारसे जानने योग्य पुद्गल प्रादिक परद्रव्य है। अब यहाँ शेय पुद्गल प्रादि परद्रव्यका