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सर्वविशुद्धज्ञानाधिकार यथा दृष्टान्तस्तथायं दार्टान्तिकः---चेतयितान तावद् ज्ञानगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यं तस्य तु व्यवहारेण ज्ञेयं पुद्गलादि परद्रव्यं । अथात्र पुद्गलादे: परद्रव्यस्य ज्ञेयस्य ज्ञायकश्चेतयिता किं भवति किं न भवतीति ? तदुभयतत्त्वसंबंधो मीमांस्यते । यदि चेतयिता पुद्गलादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवति इति तत्त्वसंबंधे जोवति चेतयिता पुद्गलादेर्भवन् पुद्गलादिरेव भवेत्, एवं सति चेतयितुः स्वद्रव्योच्छेदः । न च द्रव्यांतरसंक्रमस्य एकवचन । संजओ संयतः-प्रथमा एक सण दोमन २०.९ अब सिरणयस्स निश्चयनयस्य-षष्ठी एक० । भासिय भाषितं-प्रथमा एक० कृदन्त । णाणदंसणचरिने ज्ञानदर्शनचरित्रे-सप्तमी एक० द्वन्द्वसमास. सुणु शृणु-आज्ञार्थे लोट् मध्यम पुरुष एक० क्रिया। बवहारणयरस व्यवहारनयस्यज्ञायक चेतयिता प्रात्मा कुछ होता है या नहीं ? ऐसा उन दोनोंका तात्विक सम्बन्ध विचारा जाता है । यदि चेतयिता प्रात्मा पुद्गल आदि परद्रव्यका है तो यह न्याय है कि जो जिसका हो वह वही है अन्य नहीं । जैसे कि प्रात्माका होता हुअा ज्ञान प्रात्मा ही है ज्ञान कुछ पृथक द्रव्य नहीं है । ऐसे परमार्थरूप तत्त्वसंबंधके जीवित (विद्यमान) होनेपर प्रात्मा पुद्गलादिक का होवे तो वह चेतयिता पुद्गलादिक ही होना चाहिये। ऐसा होनेपर प्रात्माके स्वद्रव्यका प्रभाव हो जायगा, किन्तु द्रव्यका प्रभाव नहीं होता, क्योंकि अन्य द्रव्यको पलटकर अन्य द्रव्य होनेका निषेध तो पहले ही कह पाये हैं । इसलिये चेतयिता प्रात्मा पुद्गलादिक परद्रव्य का नहीं होता । प्रश्न-चेतयिता अात्मा पुद्गलादि परद्रव्यका नहीं हैं तो किसका है ? उत्तरचेतयिताका ही चेतयिता है । प्रश्न - वह दूसरा घेतयिता कौनसा है जिसका यह चेतयिता है ? उत्तर-- चेतयितासे अन्य कोई चेतयिता नहीं है, किन्तु स्वस्वामिग्रंश ही अन्य कहे जाते हैं । प्रश्न- यहां स्वस्वामिग्रंशके व्यवहारसे क्या साध्य है ? उत्तर-कुछ भी नहीं । अतः यह सिद्ध हुआ कि जायक है वह निश्चयसे अन्य किसीका ज्ञायक नहीं है, ज्ञायक ज्ञायक ही है ऐसा निश्चय है।
किञ्च --यहाँ खड़िया प्रथम तो श्वेत गुणसे भरे स्वभाव वाला द्रव्य है । दीवार कुटी आदि परद्रव्य व्यवहारसे श्वैत्य है । अब श्वेत करने योग्य कुटी प्रादि परद्रव्यकी श्वेत करने बाली खड़िया क्या है या नहीं ? इस प्रकार उन दोनोंका तात्विक संबंध विचारा जा रहा है-पदि खड़िया कुटी आदिककी है तो यह न्याय है कि जिसका जो हो वह वही है अन्य नहीं है । जैसे कि प्रात्माका होता हुमा ज्ञान प्रात्मा ही है। ऐसे परमार्थरूप संबंधके विद्यमान होनेपर खड़िया कुटो आदिकी यदि हो तो कुटी प्रादिक ही होनी चाहिये । ऐसा होनेपर खडियाके स्वद्रव्यका नाश हो जायगा, किंतु द्रव्यका उच्छेद नहीं होता, क्योंकि एक द्रव्यका