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________________ समयसार जह सिप्पियो उ कम्मं कुव्वइ ण य सो उ तम्मनो होइ । तह जीवोवि य कम्मं कुब्वदि ण य तम्मश्रो होइ ॥३४६॥ जह सिप्पियो उ करणेहिं कव्वइ ण य सो उ तम्मनो होइ। तह जीवो करणेहिं कव्वइ ण य तम्मश्रो होइ ॥३५०॥ जह सिप्पियो उ करणाणि गिलइ गा सो उ तम्मश्रो होइ। तह जीवो करणाणि उ गिलइ ण य तम्मश्रो होइ ॥३५१॥ जह सिप्पिउ कम्मफलं भुजदि ण य सो उ तम्मश्रो होइ। तह जीवो काफलं भुजा गा य तम्मश्रो होइ ॥३५२॥ एवं ववहारस्स उ वत्तब्वं दरिसणं समासेण । सुणु णिच्छयस्स बयणं परिणामकयं तु जं होई ॥३५३॥ जह सिप्पियो उ चिठं कुबइ हबइ य तहा अण्ण्णो से । तह जीवोवि य कम्मं कुब्वइ हवइ य अणण्णो से ॥३५४॥ जह चिठं कुब्वंतो उ सिप्पियो णिच्चदुक्खिनो होई । तत्तो सिया अणण्णो तह चेठेतो दुही जीवो ॥३५५॥ नामसंज्ञ--जह, सिप्पिअ, उ, कम्म, ण, य, त. उ, तम्मम, तह, जीव, वि, य, कम्म, ण, य, तम्मअ, जह, सिप्पिअ, उ, करण, कम्मफल, एवं ववहार, वत्तव्ब, दरिसण, समास, णिच्छय, वयण, परिणामकय, वास्तविकता यह है कि द्रव्य अनादि अनन्त है उसमें प्रतिक्षण पर्यायोंका उत्पाद व्यय होता रहता है । १२- निश्चयसे प्रत्येक द्रव्य अपने अपने पर्यायौंका कर्ता है। १३- जीबद्रव्य अपने पर्यायोंका कर्ता है। सिद्धान्त-१- अपनी सब पर्यायोंमें रहने वाला जीव अनादि अनन्त नित्य एक द्रव्य है । २- जीव प्रतिक्षण नवोन-नवीन पर्यायोंसे उत्पन्न होता रहता है। दृष्टि --- १- नित्यनय (१६६) । २- अनित्यनय (१७०) । प्रयोग-सब पर्यायोंमें रहते हुए भी किसी पर्यायमात्र न रहने वाले ध्र व चैतन्यचमस्कारमात्र अन्तस्तत्त्वमें उपयोग रमानेका पौरुष करना ॥ ३४५-३४८ ।। अब इस निश्चय व्यवहारके कथनको दृष्टांतसे गाथानों में कहते हैं- यथा शिल्पिक:
SR No.090405
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherBharat Varshiya Varni Jain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1995
Total Pages723
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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