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पूर्व रंग अर्थतद् बाध्यते--
एयत्तणिच्छयगयो समयो सव्वस्थ सुदरो लोए। बंधकहा एयत्ते तेण विसंवादिणी होई ॥३॥ सुन्दर शिव सत्य यहां एक स्वरूपी विशुद्ध चित् तत्त्वम् ।
किन्तु मृषा बन्धकथा, प्रात्मविसंवावकारिणी बनती ॥३॥ एक बनिश्चयगतः समयः गर्वत्र सुन्दरो लोके। बंधकर्थकत्वे तेन विसंवादिनी भवति ।।३।।
समयशब्देनात्र सामान्येन सर्व एवार्थोऽभिधीयते । समयत एकोभावेन स्वगुणपर्यायान गच्छतीति निरुक्तेः । ततः सर्वत्रापि धर्माधर्माकाशकालपुद्गलजीवद्रव्यात्मनि लोके ये यावंतः केचनाप्यर्थास्ते सर्व एव स्वकीयद्रव्यांतर्मग्नानंतस्वधर्मचक्रवुम्बिनोपि परस्परमचुम्बिनोऽयंतप्रत्या सत्तावपि नित्यमेव स्वरूपादपतंतः पररूपेणापरिणमनादविनष्टानंतव्यक्तित्वाट्टोत्कीर्णा इव
प्रकृतिशब्द- एकत्व, निश्चय, गत, समय, सर्व, सुन्दर, लोक, बन्ध, कथा, तद विसं वादिनी । नयात-चिज चयने, गम्ल गती, बन्ध बन्धने, बद संदेशवचने । पदविवरण--एकत्वनिश्चयगत:-प्रथमा एकवचन, कर्तृ विशेषण । समयः-कर्ता 1 सर्वत्र अध्यय । सुंदर:-प्रथमा एकवचा | लोक-सप्तमी एकवचन । नास्तिकवाद निराकृत हुआ । (२) जीव उत्पादव्यय वाला भी है, इस अंशसे सांख्यादिका अपरिणामवाद निराकृत हुमा । (३) जीव ध्रौव्ययुक्त भी है, इस अंशसे क्षरिणकैकान्त निरा. कृत हुना । (४) जीव दर्शनज्ञानस्वरूप है, न कि सांख्यादिसम्मत जैसा ज्ञानशून्य ! (५) जीव अनन्तधर्मा है, न कि क्षणिकवादसम्मत निरंश स्त्र लक्षणमात्र । (६) जीव गुणपर्यायवान है, म कि सांख्यादिसम्मत जैसा निर्गुण । (७) जीव विश्वरूपैकरूप है, इससे पराप्रकाशकवाद व मस्वसंवेदवादका निराकरण हुना। () जीव पुद्गलादिसे भिन्न है इस कथनसे मात्र बाह्य वस्तुका ही सत्त्व माननेकी मान्यताका निरास हुआ । (६) निरुपाधिस्वभाव में उपयुक्त जोव स्वसमय है । (१०) औपाधिक भावों में उपयुक्त जीव परसमय है ।
सिद्धान्त-(१) जीव उत्पादत्ययध्रौव्ययुक्त है । (२) जीव अनन्तधर्मा है । (३) जीव गुणपर्यायवान है। (४) निरुपाधिस्वभावोपयोगी स्वसमय है । (५) औपाधिकभावोपयोगी पर. समय है।
दृष्टि-१- उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२५)। २- भेदकल्पनासापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२६) । ३- अन्वयद्रव्याथिकनय (२७) । ४- शुद्धनिश्चयनय (४६) । ५- अशुद्धनिश्चयनय (४७)।
प्रयोग-परसमयको कष्टमय व अपवित्र जानकर परसमयतासे उपेक्षा करना और स्वसमयको अानन्दमय व पवित्र जानकर स्वसमयताकी प्राप्तिके आधारभूत समयसार सहज परमात्मतस्वकी उपासना करना अर्थात् स्वभावमें स्वतत्त्वका अनुभव करना ॥२।।